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अध्याय -7
सत्तमो णिज्जराधियारो SHEDDING OF KARMAS
द्रव्यनिर्जरा का स्वरूप -
उवभोगमिंदियेहिं दव्वाणमचेदणाणमिदराणं। जं कुणदि सम्मदिट्ठी तं सव्वं णिज्जरणिमित्त॥ (7-1-193)
सम्यग्दृष्टि जीव इन्द्रियों के द्वारा अचेतन और चेतन द्रव्यों का जो उपभोग करता है, वह सब निर्जरा का निमित्त है।
The enjoyment of sense-perceived objects - inanimate or animate - by the right believer leads to the shedding of karmas (nirjarā).
भावनिर्जरा का स्वरूप -
दव्वे उवभुजंते णियमा जायदि सुहं च दुक्खं वा। तं सुहदुक्खमुदिण्णं वेददि अध णिज्जरं जादि॥ (7-2-194)
परद्रव्यों का (जीव के द्वारा) उपभोग करने पर नियम से सुख अथवा दुःख होता है। (जीव) उदय में आये हुए उस सुख-दुःख का अनुभव करता है; फिर (वह) निर्जरा को प्राप्त हो जाता है (झड़ जाता है)।
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