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________________ (१) नाया, सम, राज/राय, आणि औप. या ग्रंथातील समान कला अशा आहेत : (१) लेह (२) गणिय, गणित (अ औ) (३) रूव (४) नट्ट, णट्ट (औप) (५) गीय (६) वाइय (७) सरगय (८) पोक्खरगय (नाया, वैप), पुक्खरगय (९) समताल (१०) जूय (११) जणवाय (१२) अट्ठावय (१३) पोरेकच्च (१४) दगमट्टिया (१५) अन्नविहि, अण्णविहि (अ औ) (१६) पाणविहि (१७) वत्थविहि (१८) सयणविहि (१९) अज्जा (२०) पहेलिया (२१) मागहिया (२२) गाहा (२३) सिलोग, सिलोय (अ औ, ज्ञाता) (२४) आभरणविहि (२५) तरुणीपडिकम्म (२६) इथिलक्खण, इत्थीलक्खण (सम) (२७) पुरिसलक्खण (२८) हयलक्खण (२९) गयलक्खण (३०) गोणलक्खण (३१) कुक्कुडलक्खण (३२) छत्तलक्खण (३३) दंडलक्खण, डंडलक्खण (ज्ञाता) (३४) असिलक्खण (३५) मणिलक्खण (३६) कागिणिलक्खण (नाया). कागणिलक्खण (सम, राय, सुऔ, ज्ञाता), काकणिलक्खण (अऔ) (३७) नगरमाण, णगरमाण (राय, राज) (३८) वूह (३९) पडिवूह, परिवूह (ज्ञाता) (४०) चार (४१) पडिचार, परिचार (ज्ञाता) (४२) जुद्ध (४३) निजुद्ध, नियुद्ध (राय) (४४) जुद्धाइजुद्ध', जुद्धातिजुद्ध (ज्ञाता, अऔ) (४५) मुट्ठिजुद्ध (४६) बाहुजुद्ध (४७) ईसत्थ, इसत्थ (अऔ) (४८) छरुप्पवाय, छरुप्पवाह (अऔ) (४९) धणुव्वेय, धणुवेय (राज, राय) (५०) हिरण्णपाग, हिरन्नपाग (ज्ञाता) (५१) सुवण्णपाग, सुवन्नपाग (सम, ज्ञाता) (५२) वट्टखेड (नाया, सम, अऔ), वट्टखेड्ड (राम, राज), वत्तखेड्ड (सुऔ) (५३) नालियाखेड (नाया, सम, वैप), णालियाखेड (अ औ) णालिया खेड्ड (राय, राज, सुऔ) (५४) पत्तच्छेज्ज (५५) कडच्छेज्ज (नाया), कडगच्छेज्ज (ज्ञाता, सम, राय, राज, सुऔ), कडवच्छेज्ज (अऔ) (५६) सज्जीव, सजीव (सम, राज) (५७) निज्जीव (५८) सउणरुय. (२) (अ) नाया, राय, औप या तिन्हीतील समान कला अशा : (१) पासय (नाया), पासग (राज, राय), पासक (अ औ) (२) विलेवणविहि (३) गीइया (४) हिरण्णजुत्ति (५) सुवण्णजुत्ति, सुवन्न-जुत्ति (ज्ञाता) (६) चुण्णजुत्ति, चुन्नजुत्ति (ज्ञाता) (७) वत्थुविज्जा (८) चक्कवूह (९) गरुलवूह (१०) सगडवूह (११) लयाजुद्ध. (आ) नाया, सम आणि राय या तिन्हीतील समान कला अशा :(१) अट्ठिजुद्ध (२) सुत्तखेड, सुत्तखेड्ड (राय) (इ) सम, राय आणि औप या तिन्हीतील समान कला अशा :(१) चक्कलक्खण (२) मणिपाग (सुऔ) (३) धातुपाग (सुऔ) (ई) नाया, सम आणि औप या तिन्हीतील समान कला अशा :(१) खंधारमाण (नाया, सुऔ), खंधावारमाण (सम) (३) सम आणि औप या दोन ग्रंथांतील समान कला पुढीलप्रमाणे : (१) गंध जुत्ति (२) चम्मलक्खण (३) खंधावारनिवेस (सम), खंधारनिवेसण (सुऔ) (४) वत्थुनिवेस (सम)११, वत्थुनिवेसण (सुऔ) (५) नगरनिवेस (सम), नगरनिवेसण (सुऔ) (४) एकाच ग्रंथात आढळणाऱ्या कला अशा आहेत :(क) राय । राज मध्ये पुढील कला आहेत :(१) णिद्दाइय (णिद्दाइया) (२) माणवार (३) जुद्धजुद्ध (४) खंधवार, खंदवार (उप) (५) जणवय
SR No.009845
Book TitleJain Vidyache Vividh Aayam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherNalini Joshi
Publication Year2011
Total Pages25
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size23 MB
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