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________________ ७२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [३६४] जातिमद से प्रतिस्तब्ध-इप्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी लोगों ने इस प्रकार कहा [३६५-३६६] “बीभत्स रूपवाला, काला, विकराल, बेडोल मोटी नाकवाला, अल्प एवं मलिन वस्त्रवाला, धूलिधूसरित होने से भूत की तरह दिखाई देनेवाला, गले में संकरदूष्य धारण करनेवाला यह कौन आ रहा है ?" "अरे अदर्शनीय ! तू कौन है ? यहाँ किस आशा से आया है तू ? गंदे और धूलिधूसरित वस्त्र से तू अधनंगा पिशाच की तरह दीख रहा है । जा, भाग यहाँ से यहाँ क्यों खड़ा है ?" [३६७-३६९] उस समय महामुनि के प्रति अनुकम्पा का भाव रखनेवाले तिन्दुक वृक्षवासी यक्ष ने अपने शरीर को छुपाकर ऐसे वचन कहे-“मैं श्रमण हूँ । मैं संयत हूँ । मैं ब्रह्मचारी हं । मैं धन, पचन और परिग्रह का त्यागी हँ । भिक्षा के समय दूसरों के लिए निष्पन्न आहार के लिए यहाँ आया हूँ ।” “यहां प्रचुर अन्न दिया, खाया और उपभोग में लाया जा रहा है । आपको मालूम होना चाहिए, मैं भिक्षाजीवी हूँ । अतः बचे हुए अन्न में से कुछ इस तपस्वी को भी मिल जाए ।" [३७०]रुद्रदेव-“यह भोजन केवल ब्राह्मणों के लिए तैयार किया गया है । यह एकपक्षीय है, अतः दूसरों के लिए अदेय है । हम तुझे यह यज्ञार्थनिष्पन्न अन्न जल नहीं देंगे। फिर तू यहां क्यों खड़ा है ?" [३७१] यक्ष-“अच्छी फसल की आशा से किसान जैसे ऊंची और नीची भूमि में भी बीज बोते हैं । इस कृषकदृष्टि से ही मुझे दान दो । मैं भी पुण्यक्षेत्र हूं, अतः मेरी भी आराधना करो ।" [३७२] रुद्रदेव-“संसार में ऐसे क्षेत्र हमें मालूम हैं, जहां बोये गए बीज पूर्ण रूप से उग आते हैं । जो ब्राह्मण जाति और विद्या से सम्पन्न हैं, वे ही पुष्यक्षेत्र हैं । [३७३-३७४] यक्ष-"जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह हैं, वे ब्राह्मण जाति और विद्या से विहीन पापक्षेत्र हैं ।" “हे ब्राह्मणो ! इस संसार में आप केवल वाणी का भार ही वहन कर रहे हो । वेदों को पढ़कर भी उनके अर्थ नहीं जानते । जो मुनि भिक्षा के लिए समभावपूर्वक ऊंच नीच घरों में जाते हैं, वे ही पुण्य-क्षेत्र है ।" [३७५] रुद्रदेव-"हमारे सामने अध्यापकों के प्रति प्रतिकूल बोलने वाले निर्ग्रन्थ ! क्या बकवास कर रहा है ? यह अन्न जल भले ही सड़ कर नष्ट हो जाय, पर, हम तुझे नहीं देंगे ।" [३७६] यक्ष-“मैं समितियों से सुसमाहित हूँ, गुत्तियों से गुप्त हूं और जितेन्द्रिय हूँ । यह एषणीय आहा यदि नहीं देते हो, तो आज इन यज्ञों का तुम क्या लाभ लोगे ?" [३७७-३७९] रुद्रदेव-"यहां कोई हैं क्षत्रिय, उपज्योतिष-रसोइये, अध्यापक और छात्र, जो इस निग्रन्थ को डण्डे से, फलक से पीट कर और कण्ठ पकड़ कर निकाल दें ।" यह सुनकर बहुत से कुमार दौड़ते हुए आए और दण्डों से, बेतों से, चाबुकों से ऋषि को पीटने लगे । राजा कौशलिक की अनिन्द्य सुंदरी कन्या भद्रा ने मुनि को पिटते देखकर क्रुद्ध कुमारों को रोका । [३८०-३८२] भद्रा-“देवता की बलवती प्रेरणा से राजा ने मुझे इस मुनि को दिया
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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