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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ( अध्ययन-११-बहुश्रुतपूजा) [३२८] सांसारिक बन्धनों से रहित अनासक्त गृहत्यागी भिक्षु के आचार का मैं यथाक्रम कथन करूंगा, उसे तुम मुझसे सुनो । [३२९] जो विद्याहीन है, और विद्यावान् होकर भी अहंकारी है, अजितेन्द्रिय है, अविनीत है, बार-बार असंबद्ध बोलता है-वह अबहुश्रुत है । [३३०] इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती है-अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य । [३३१-३३२] जो हँसी-मजाक नहीं करता, सदा दान्त रहता है, किसी का मर्म प्रकाशित नहीं करता, अशील, न हो, विशील न हो, रसलोलुप न हो, क्रोध न करता हो, सत्य में अनुरक्त हो, इन आठ स्थितियों में व्यक्ति शिक्षाशील होता है । [३३२-३३६] चौदह प्रकार से व्यवहार करने वाला संयत-मुनि अविनीत कहलाता है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता । जो बार बार क्रोध करता है, क्रोध को लम्बे समय तक बनाये रखता है, मित्रता को ठुकराता है, श्रुत प्राप्त कर अहंकार करता है-स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार करता है, मित्रों पर क्रोध करता है, प्रिय मित्रों की भी एकान्त में बुराई करता है-असंबद्ध प्रलाप करता है, द्रोही है, अभिमानी है, रसलोलुप है, अजितेन्द्रिय है, असंविभागी है और अप्रीतिकर है । व अविनित है । [३३७-३४०] पन्दह कारणों से सुविनीत कहलाता है जो नम्र है, अचपल है, दम्भी नहीं है, अकुतूहली है-किसी की निन्दा नहीं करता, जो क्रोध को लम्बे समय तक पकड़ कर नहीं रखता, मित्रों के प्रति कृतज्ञ है, श्रुत को प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता-स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार नहीं करता । मित्रों पर क्रोध नहीं करता । जो अप्रिय मित्र के लिए भी एकान्त में भलाई की ही बात करता है-वाक्-कलह और मारपीट, नहीं करता, अभिजात है, लज्जाशील है, प्रतिसंलीन वह बुद्धिमान् साधु विनीत होता है । [३४१] जो सदा गुरुकुल में रहता है, योग और उपधान में निरत है, प्रिय करनेवाला और प्रियभाषी है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है । [३४२] जैस शंख में रखा हुआ दूध स्वयं अपने और अपने आधार के गुणों के कारण दोनों ओर से सुशोभित रहता है, उसी तरह बहुश्रुत भिक्षु में धर्म, कीर्ति और श्रुत भी सुशोभित होते हैं । [३४३] जिस प्रकार कम्बोज देश के अश्वों में कन्थक घोड़ा जातिमान् और वेग में श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत श्रेष्ठ होता है । [३४४] जैसे जातिमान् अश्व पर आरूढ दृढ पराक्रमी शूरवीर योद्धा दोनों तरफ होने वाले नान्दी घोषों से सुशोभित होता है, वैसे बहुश्रुत भी सुशोभित होता है | [३४५] जिस प्रकार हथिनियों से घिरा हुआ साठ वर्ष का बलवान हाथी किसी से पराजित नहीं होता, वैसे बहुश्रुत भी किसी से पराजित नहीं होता । [३४६] जैसे तीक्ष्ण सींगोंवाला, बलिष्ठ कंधों वाला वृषभ-यूथ के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है, वैसे ही बहुश्रुत मुनि भी गण के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है ।
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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