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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [४२८-४२९] जैसे रात्रि के अन्त में प्रदीप्त होता हुआ सूर्य सम्पूर्ण भारत को प्रकाशित करता है, वैसे ही आचार्य श्रुत, शील और प्रज्ञा से भावों को प्रकाशित करते हैं तथा जिस प्रकार देवों के बीच इन्द्र सुशोभित होता है, सुशोभित होते हैं । जैसे मेघों से मुक्त अत्यन्त निर्मल आकाश में कौमुदी के योग से युक्त, नक्षत्र और तारागण से परिवृत चन्द्रमा सुशोभित होता है, उसी प्रकार गणी (आचार्य) भी भिक्षुओं के बीच सुशोभित होते हैं । [४३०] अनुत्तर ज्ञानादि की सम्प्राप्ति का इच्छुक तथा धर्मकामी साधु (ज्ञानादि रत्नों के) महान् आकर, समाधियोग तथा श्रुत, शील, और प्रज्ञा से सम्पन्न महर्षि आचार्यों की आराधना करे तथा उनको विनयभक्ति से सदा प्रसन्न रखे । ४२ [४३१] मेधावी साधु (पूर्वोक्त) सुभाषित वचनों को सुनकर अप्रमत्त रहता हुआ आचार्य की शुश्रूषा करे । इस प्रकार वह अनेक गुणों की आराधना करके अनुत्तर सिद्धि प्राप्त करता है । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन - ९ - उद्देशक - २ [४३२-४३३] वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है, स्कन्ध से शाखाएँ शाखाओं से प्रशाखाएँ निकलती हैं । तदनन्तर पत्र, पुष्प, फल और रस उत्पन्न होता है । इसी प्रकार धर्म (-रूप वृक्ष) का मूल विनय है और उस का परम रसयुक्त फल मोक्ष है । उस ( विनय ) के द्वारा श्रमण कीर्ति, श्रुत और निःश्रेयस् प्राप्त करता है । [४३४] जो क्रोधी है, मृग- पशुसम अज्ञ, अहंकारी, दुर्वादी, कपटी और शठ है; वह अविनीतात्मा संसारस्रोत में वैसे ही प्रवाहित होता रहता है, जैसे जल के स्रोत में पड़ा हुआ काष्ठ । [४३५] (किसी भी) उपाय से विनय (-धर्म) में प्रेरित किया हुआ जो मनुष्य कुपित हो जाता है, वह आती हुई दिव्यलक्ष्मी को डंडे से रोकता (हटाता ) है । [४३६-४४२] जो औपबाह्य हाथी और घोड़े अविनीत होते हैं, वे (सेवाकाल में ) दुःख भोगते हुए तथा भार वहन आदि निम्न कायों में जुटाये जाते हैं और जो हाथी और घोड़े सुविनीत होते हैं, वे सुख का अनुभव करते हुए महान् यश और ऋद्धि को प्राप्त करते हैं । इसी तरह इस लोक में जो नर-नारी अविनीत होते हैं, वे क्षत-विक्षत, इन्द्रियविकल, दण्ड और शस्त्र से जर्जरित, असभ्य वचनों से ताड़ित, करुण, पराधीन, भूख और प्यास से पीड़ित होकर दुःख का अनुभव करते हैं । और जो नर-नारी सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि को प्राप्त कर महायशस्वी बने हुए सुख का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार जो देव, यक्ष और गुह्यक अविनीत होते हैं, वे पराधीनता - दासता को प्राप्त होकर दुःख भोगते हैं । और जो देव, यक्ष और गुह्यक सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि और महान् यश को प्राप्त कर सुख का अनुभव करते हैं । [४४३] जो साधक आचार्य और उपाध्याय की सेवा-शुश्रूषा करते हैं, उनके वचनों का पालन करते हैं, उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढ़ती है, जिस प्रकार जल से सींचे हुए वृक्ष बढ़ते हैं । [४४४-४४७] जो गृहस्थ लोग इस लोक के निमित्त, सुखोपभोग के लिए, अपने या
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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