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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [१११] (किन्तु ) संसृष्ट हाथ से, कड़छी से या बर्तन से दिया जाने वाला आहार यदि एषणीय हो तो मुनि लेवें । २६ [११२-११३] - ( जहाँ ) दो स्वामी या उपभोक्ता हों और उनमें से एक निमंत्रित करे, तो मुनि उस दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे । वह दूसरे के अभिप्राय को देखे ! यदि उसे देना प्रिय लगता हो तो यदि वह एषणीय हो तो ग्रहण कर ले । [११४] गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किये गए विविध पान और भोजन यदि उसके उपभोग में आ रहे हों, तो मुनि ग्रहण न करे, किन्तु यदि उसके खाने से बचे हुए हों तो उन्हें ग्रहण कर ले । [११५-११८] -कदाचित् कालमासवती गर्भवती महिला खड़ी हो और श्रमण के लिए बैठे; अथवा बैठी हो और खड़ी हो जाए तो स्तनपान कराती हुई महिला यदि बालक को रोता छोड़ कर भक्त-पान लाए तो वह भक्त - पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है। अतः उसे निषेध करे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है । [११९] - जिस भक्त-पान के कल्पनीय या अकल्पनीय होने में शंका हो, उसे देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार कल्पनीय नहीं है । [१२०-१२१] - पानी के घड़े, पत्थर की चक्की, पीठ, शिलापुत्र, मिट्टी आदि के लेप, लाख आदि श्लेषद्रव्यों या किसी अन्य द्रव्य से - पिहित बर्तन का श्रमण के लिए मुंह खोल कर आहार देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है । [१२२-१२९] यदि मुनि यह जान जाए या सुन ले कि यह अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य दानार्थ, पुण्यार्थ, वनीपकों के लिए या श्रमणों के निमित्त बनाया गया है तो वह भक्तपान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है । ( इसलिए ) भिक्षु उस को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है । [१३० - १३१] साधु या साध्वी औद्देशिक, क्रीतकृत, पूतिकर्म, आहृत, अध्यवतर, प्रामित्य और मिश्रजात, आहार न ले । पूर्वोक्त आहारादि के विषय में शंका होने पर उस का उद्गम पूछे कि यह किसके लिए किसने बनाया है ? फिर निःशंकित और शुद्ध जान कर आहार ग्रहण करे । [१३२-१३७] यदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य, पुष्पों से और हरित दूर्वादिकों से उन्मिश्र हो, सचित्त पानी पर, अथवा उत्तिंग और पनक पर निक्षिप्त हो, अग्नि पर निक्षिप्त या स्पर्शीत हो दे, तो वह भक्त - पान संयतों के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है । [१३८-१३९] चूले में से इंधन निकालकर अग्रि प्रज्वलित करके या तेज करके या अग्नि को ठंडा करके, अन्न का उभार देखकर उसमें से कुछ कम करके या जल डालके या अग्नि से नीचे उतारकर देवें तो वह भोजनपान संयमी के लिए अकलप्य है । तब भिक्षु कहता है कि यह भिक्षा मुझे कल्प्य नहीं है । [१४०-१४१] कभी काठ, शिला या ईंट संक्रमण के लिए रखे हों और वे चलाचल
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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