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अनुयोगद्वार-३२७
२३७ वर्णन जानना । सर्वाकाश-श्रेणि ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण रूप है ।
भाव-अक्षीण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा-आगम से, नोआगम से । ज्ञायक जो उपयोग से युक्त हो-वह आगम की अपेक्षा भाव-अक्षीण है । नोआगमभाव-अक्षीण का क्या स्वरूप है ?
३२८] जैसे दीपक दूसरे सैकड़ों दीपकों को प्रज्वलित करके भी प्रदीप्त रहता है, उसी प्रकार आचार्य स्वयं दीपक के समान देदीप्यमान हैं और दूसरों को देदीप्यमान करते हैं ।
[३२९] इस प्रकार से नोआगमभाव-अक्षीण का स्वरूप जानना चाहिये ।
आय क्या है ? आय के चार प्रकार हैं । यथा-नाम-आय, स्थापना-आय, द्रव्यआय, भाव-आय । नाम-आय और स्थापना-आय का वर्ण' पूर्ववत् जानना । द्रव्य-आय के दो भेद हैं-आगम से, नोआगम से । जिसने आय यह पद सीख लिया है, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य है यावत् जितने उपयोग रहित हैं, उतने ही आगम से द्रव्य-आय हैं । यह आगम से द्रव्य-आय का स्वरूप जानना । नोआगमद्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं । यथा-ज्ञायकशरीरद्रव्य-आय, भव्यशरीरद्रव्य-आय, ज्ञायकशरीरभव्यशरीव्यतिरिक्तद्रव्यआय ।
ज्ञायकशरीद्रव्य-आय किसे कहते हैं ? आय पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित त्यक्त आदि शरीर द्रव्याध्ययन की वक्तव्यता जैसा ही ज्ञायकशरीरनोआगमद्रव्यआय का स्वरूप जानना । समय पूर्ण होने पर योनि से निकलकर जो जन्म को प्राप्त हआ आदि भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के वर्णन के समान भव्यशरीद्रव्य-आय का स्वरूप जानना । ज्ञायकशरीरभव्यशरीव्यतिरिक्त-द्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं । यथा-लौकिक, कुप्रवाचनिक, लोकोत्तर । लौकिकद्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं । यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र ।
सचित्त लौकिक-आय क्या है ? तीन प्रकार हैं । यथा-द्विपद-आय, चतुष्पद-आय, अपद-आय । इनमें से दास-दासियों की आय द्विपद-आय रूप है । अश्वों हाथियों की प्राप्ति चतुष्पद-आय रूप और आम, आमला के वृक्षों आदि की प्राप्ति अपद-आय रूप है । सोनाचांदी, मणि-मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि की प्राप्ति अचित्त-आय है । अलंकारादि से तथा वाद्यों से विभूषित दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र आय कहते हैं । कुप्रवाचनिक आय तीन प्रकार की है । यथा-सचित्त, अचित्त, मिश्र । इन तीनों का वर्णन लौकिक-आय के अनुरूप जानना .
लोकोत्तरिक-आय क्या है ? तीन प्रकार हैं । सचित्त, अचित्त और मिश्र । शिष्यशिष्याओं की प्राप्ति सचित्त-लोकोत्तरिक-आय है । अचित्त पात्र, वस्त्र, पादपोंच्छन, आदि की प्राप्ति अचित्त लोकोत्तरिक-आय हैं । भांडोपकरणादि सहित शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति-लाभ को मिश्र आय कहते हैं ।
भाव-आय का क्या स्वरूप है ? दो प्रकार हैं । आगम से, नोआगम से । आयपद के ज्ञाता और साथ ही उसके उपयोग से युक्त जीव आगमभाव-आय हैं । नोआगमभाव-आय के दो प्रकार हैं, यथा-प्रशस्त और अप्रशस्त । प्रशस्त नोआगमभाव-आय के तीन प्रकार हैं । यथा-ज्ञान-आय, दर्शन-आय, चारित्र-आय । अप्रशस्तनोआगमभाव-आय के चार प्रकार हैं ।