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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद इनकी विपरीतता में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतकालग्रहण । तृणरहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, द्रह और तालाबों को देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ कुदृष्टि हुई है यह अतीतकालग्रहण है । गोचरी गये हुए साधु को भिक्षा नहीं मिलते देखकर अनुमान किया जाना कि यहाँ दुर्भिक्ष है । यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है । अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [३०८] सभी दिशाओं में धुंआ हो रहा है, आकाश में भी अशुभ उत्पात हो रहे हैं, इत्यादि से यह अनुमान कर लिया जाता है कि यहाँ कुवृष्टि होगी, क्योंकि वृष्टि के अभाव के सूचक चिह्न दृष्टिगोचर हो रहे हैं । [ ३०९] आग्रेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी । यह अनागतकालग्रहणअनुमान 1 २२६ 1 उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे - साधर्म्यापनीत और वैधर्म्यापनीत । जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाये उसे साधर्म्यापनीत कहते हैं । उसके तीन प्रकार हैं- किंचित्साधर्म्यापनीत, प्रायः साधर्म्यापनीत और सर्वसाधर्म्यापनीत । जैसा मंदर पर्वत है वैसा ही सर्षप है और जैसा सर्षप है वैसा ही मन्दर है । जैसा समुद्र है, उसी प्रकार गोष्पदहै और जैसा गोष्पद है, वैसा ही समुद्र है तथा जैसा आदित्य है, वैसा खद्योत है । जैसा खद्योत है, वैसा आदित्य है । जैसा चन्द्रमा है, वैसा कुंद पुष्प है, और जैसा कुंद है, वैसा चन्द्रमा है । यह किंचित्साधर्म्यापनीत है । जैसी गाय है वैसा गवय होता है और जैसा गवय है, वैसी गाय है । यह प्रायः साधर्म्यापनीत है । सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती, तथापि उसी से उसको उपमित किया जाता है । वह इस प्रकार - अरिहंत ने अरिहंत के सदृश, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती के जैसा, बलदेव ने बलदेव के सदृश, वासुदेव ने वासुदेव के समान, साधु ने साधु सदृश किया । यही सर्वसाधर्म्यापनीत है । वैधर्म्यापनीत का तात्पर्य क्या है ? वैधम्र्म्यापनीत के तीन प्रकार हैं, यथाकिंचित्वैधर्म्यापनीत, प्रायः वैधम्र्योपनीत और सर्ववैधर्म्यापनीत । किसी धर्मविशेष की विलक्षण प्रकट करने को किंचित्वैधर्म्यापनीत कहते हैं । जैसा शबला गाय का बछड़ा होता है वैसा बहुला गाय का बछड़ा नहीं और जैसा बहुला गाय का बछड़ा वैसा शबला गाय का नहीं होता है । यह किंचित्वैधर्म्यापनीत का स्वरूप जानना । अधिकांश रूप में अनेक अवयवगत विसदृशता प्रकट करना । प्रायः वैधर्म्यापनीत हैं । यथा - जैसा वायस है वैसा पायस नहीं होता और जैसा पायस होता है वैसा वायस नहीं । यही प्रायः वैधम्र्म्यापनीत है । जिसमें किसी भी प्रकार की सजातीयता न हो उसे सर्ववैधम्र्योपनीत कहते । यद्यपि सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती है, तथापित उसी की उपमा उसी को दी जाती है, जैसे-नीच ने नीच के समान, दास दास के सदृश, कौए ने कौए जैसा, श्वान ने श्वान जैसा और चांडाल ने चांडाल के सदृश किया । यही सर्ववैधर्म्यापनीत है । आगमप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है । यथा - लौकिक, लोकोत्तर । जिसे अज्ञानी मिथ्यादृष्टिजनों ने अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचा हो, उसे लौकिक आगम कहते हैं । यथा - महाभारत, रामायण यावत् सांगोपांग चार वेद । उत्पन्नज्ञान-दर्शन के धारक, अतीत,
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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