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________________ अनुयोगद्वार-१५० १९१ अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय इन नामों को अविशेषित नाम माने जाने पर अनुक्रम से उनके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम हैं । यदि द्वीन्द्रिय को अविशेषित नाम माना जाये तो पर्याप्त द्वीन्द्रिय और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय विशेषित नाम हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के लिये भी जानना । पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक को अविशेषित नाम मानने पर जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, स्थलचर, पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं | जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो सम्मूर्छिम० और गर्भव्यत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोकि यह विशेषित नाम है । संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो उसके पर्याप्त० और अपर्याप्त संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक ये दो भेद विशेषित नाम हैं । गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह नाम अविशेषित है और पर्याप्त तथा अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक नाम विशेषित हैं । थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक को अविशेषित नाम माने जाने पर चतुष्पद० और परिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं । यदि चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक को अविशेषित माना जाये तो सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक ये भेद विशेषित नाम हैं । सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह अविशेषित नाम हो तो पर्याप्त० और अपर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं । यदि गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक नाम को अविशेषित माना जाये तो पर्याप्त० और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक ये विशेषित नाम हैं । यदि परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक यह अविशेषित नाम है तो उरपरिसर्प० और भुजपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक नाम विशेषित नाम हैं । इसी प्रकार संमूर्छिम पर्याप्त और अपर्याप्त तथा गर्भव्युत्क्रान्तिक पर्याप्त, अपर्याप्त का कथन कर लेना । खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो समूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम रूप हैं । यदि संमूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नाम को अविशेषित नाम माना जाये तो पर्याप्त० और अपर्याप्त समूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक रूप उसके भेद विशेषित नाम हैं । इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर में भी समझ लेना । मनुष्य इस नाम को अविशेपित माना जाये तो समूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य यह नाम विशेषित कहलायेंगे । संमूर्छिम मनुष्य को अविशेषित नाम मानने पर पर्याप्त० और अपर्याप्त संमूर्छिम मनुष्य यह दो नाम विशेषित नाम हैं । गर्भव्युत्क्रान्तिक में भी ईसी तरह समझ लेना । देव नाम को अविशेषित मानने पर उसके भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक यह देवनाम विशेषित कहलायेंगे | यदि भवनवासी नाम को अविशेषित माना जाये तो असुरकुमरा, नागकुमार, यावत् स्तनितकुमार ये नाम विशेषित हैं । इन सब नामों में से भी प्रत्येक को यदि अविशेषित माना जाये तो उन सबके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद विशेषित नाम कहलाएँगे । वाणव्यंतर इस नाम को अविशेषित मानने पर पिशाच, भूत, यावत् गंधर्व, ये
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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