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________________ १९० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद है ? उपसंपद् से लेकर इच्छाकार पर्यन्त स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर दस पर्यन्त एक-एक की वृद्धि द्वारा श्रेणी रूप में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने से प्राप्त राशि में से प्रथम और अन्तिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं । [१४५] भावानुपूर्वी क्या है ? तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव, पारिणामिकभाव, सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास पूर्वानुपूर्वी है । पश्चानुपूर्वी क्या है ? सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त भावों की स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर एकोत्तर वृद्धि द्वारा छह पर्यन्त की श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर प्राप्त राशि में से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं । [१४६] नाम क्या है ? नाम के दस प्रकार हैं । एक नाम, दो नाम, तीन नाम, चार नाम, पांच नाम, छह नाम, सात नाम, आठ नाम, नौ नाम, दस नाम । [१४७-१४९] एकनाम क्या है ? द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी 'नाम' ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष में कही गई है । यह एकनाम है । [१५०] द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं-एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक । एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं । जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं । अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं । यथा-कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं । अथवा द्विनाम के दो प्रकार हैं । जीवनाम और अजीवनाम । जीवनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं । देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त इत्यादि । अजीवनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं । घट, पट, कट, रथ इत्यादि । अथवा अपेक्षादृष्टि से द्विनाम के और भी दो प्रकार हैं । यथा-विशेषित और अविशेषित । द्रव्य यह अविशेषित नाम है और जीवद्रव्य एवं अजीवद्रव्य ये विशेषित नाम है । जीवद्रव्य को अविशेषित नाम माने जाने पर नारक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ये विशेषित नाम हैं । नारक अविशेषित नाम है और रत्नप्रभा का नारक, शर्कराप्रभा का नारक यावत् तमस्तमःप्रभा का नारक यह विशेषित द्विनाम हैं । रत्नप्रभा का नारक इस नाम को अविशेषित माना जाए तो रत्नप्रभा का पर्याप्त नारक और अपर्याप्त नारक विशेषित नाम होंगे यावत् तमस्तमःप्रभापृथ्वी के नारक को अविशेषित मानने पर उसके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम कहलाएँगे । तिर्यंचयोनिक इस नाम को अविशेषित माना जाए तो एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये पांच विशेषित नाम हैं । __एकेन्द्रिय को अविशेषित नाम माना जाये तो पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय ये विशेषित नाम हैं । यदि पृथ्वीकाय नाम को अविशेषित माना जाये तो सूक्ष्मपृथ्वीकाय और बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं । सूक्ष्मपृथ्वीकाय नाम को अविशेषित मानने पर पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं । बादरपृथ्वीकाय नाम अविशेषित है तो पर्याप्त और अपर्याप्त बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं । इसी प्रकार
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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