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________________ अनुयोगद्वार-१२५ १८७ कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? असंख्यातप्रदेशावगाढ यावत् एकप्रदेशावगाढ रूप में व्युत्क्रम से क्षेत्र का उपन्यास पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से प्रारंभ कर एकोत्तर वृद्धि द्वारा असंख्यात प्रदेश पर्यन्त की स्थापित श्रेणी का परस्पर गुणा करने से निष्पन्न राशि में से आद्य और अंतिम इन दो रूपों को कम करने पर क्षेत्रविषयक अनानुपूर्वी बनती है । [१२६-१२७] कालानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार हैं, औपनिधिकी और अनौपनिधिकी। इनमें से औपनिधिकी कालानुपूर्वी स्थाप्य है । तथा अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की है-नैगम-व्यवहारनयसंमत और संग्रहनयसम्मत । [१२८] नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके पांच प्रकार हैं । -अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम । [१२९] नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? वह इस प्रकार है-तीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है यावत् दस समय, संख्यात समय, असंख्यात समय की स्थितिवाला द्रव्य आनुपूर्वी है । एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है । दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्यक है । तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य आनुपूर्वियां हैं यावत् संख्यातसमयस्थितिक, असंख्यातसमयस्थितिक द्रव्य आनुपूर्वियां हैं । एक समय की स्थिति वाले अनके द्रव्य अनेक अनानुपूर्वियां हैं । दो समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य अनेक अवक्तव्यक रूप हैं । इस नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता के द्वारा यावत् भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है । [१३०] नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है, इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी २६ भंग जानना । इस नैगमव्यवहारनयसंमत यावत् (भंगसमुत्कीर्तनता का) क्या प्रयोजन है ? ईनसे भंगोपदर्शनता की जाती है। [१३१] नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? वह इस प्रकार हैत्रिसमयस्थितिक एक-एक परमाणु आदि द्रव्य आनुपूर्वी है, एक समय की स्थितिवाला एकएक परमाणु आदि द्रव्य अनानुपूर्वी है और दो समय की स्थितिवाला परमाणु आदि द्रव्य अवक्तव्यक है । तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य ‘आनुपूर्वियां' इस पद के वाच्य हैं । एक समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य ‘अनानुपूर्वियां' तथा दो समय की स्थिति वाले द्रव्य 'अवक्तव्य' पद के वाच्य हैं । इस प्रकार यहाँ भी द्रव्यानुपूर्वी के पाठानुरूप छब्बीस भंगों के नाम जानना, यावत् यह भंगोपदर्शनता का आशय है । [१३२] समवतार क्या है ? नैगम-व्यवहारनयसंमत अनेक आनुपूर्वी द्रव्यों का कहाँ समवतार होता है ? यावत्-तीनों ही स्व-स्व स्थान में समवतरित होते हैं । [१३३-१३४] अनुगम क्या है ? अनुगम नौ प्रकार का है । सत्पदप्ररूपणा यावत् अल्पबहुत्व । [१३५] नैगम-व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं हैं ? नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं । नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? तीनों द्रव्य असंख्यात ही हैं । नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में रहते हैं ? इत्यादि प्रश्न है । एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यात भाग
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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