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________________ १८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा, इस क्रम से उपन्यास करना अधोलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी हैं । अधोलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? तमस्तमःप्रभा से लेकर यावत् रत्नप्रभा पर्यन्त व्युत्क्रम से उपन्यास करना अधोलोकपश्चानुपूर्वी है । अधोलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? आदि में एक स्थापित कर सात पर्यन्त एकोत्तर वृद्धि द्वारा निर्मित श्रेणी में परस्पर गुणा करने से निष्पन्न राशि में से प्रथम और अन्तिम दो भंगों को कम करने पर यह अनानुपूर्वी बनती है । तिर्यग् लोकक्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद हैं । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । मध्यलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है [१२१-१२४] जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, घृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र । जम्बूद्वीप से लेकर ये सभी द्वीप-समुद्र बिना किसी अन्तर के एक दूसरे को घेरे हुए स्थित हैं । इनके आगे असंख्यात-असंख्यात द्वीप-समुद्रों के अनन्तर भुजगवर तथा इसके अनन्तर असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् कुशवरद्वीप समुद्र है और इसके बाद भी असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् क्रौंचवर द्वीप है । पुनः असंख्यात द्वीपसमुद्रों के पश्चात् आभरणों आदि के सदृश शुभ नाम वाले द्वीपसमुद्र हैं | यथा-आभरण, वस्त्र, गंध, उत्पल, तिलक, पद्म, निधि, रत्न, वर्षधर, ह्रद, नदी, विजय, वक्षस्कार, कल्पेन्द्र। कुरु, मंदर, आवास, कूट, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्यदेव, नाग, यक्ष, भूत आदि के पर्यायवाचक नामों वाले द्वीप-समुद्र असंख्यात हैं और अन्त में स्वयंभूरमणद्वीप एवं स्वयंभूरमणसमुद्र है । यह तीर्थालोक क्षेत्रानुपूर्वी हुई । [१२५] मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? स्वयंभूरमणसमुद्र, भूतद्वीप आदि से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त व्युत्क्रम से द्वीप-समुद्रों के उपन्यास करना मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं । मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-एक से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर उनका परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से आद्य और अन्तिम इन दो भंगों को छोड़कर मध्य के समस्त भंग मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी हैं । ____ ऊर्ध्वलोकक्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रविषयक पूर्वानुपूर्वी क्या है ? सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयकविमान, अनुत्तरविमान, ईषत्प्राग्भारापृथ्वी, इस क्रम से ऊर्ध्वलोक के क्षेत्रों का उपन्यास करना ऊर्ध्वलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी हैं । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? ईषत्प्रागभाराभूमि से सौधर्म कल्प तक के क्षेत्रों का व्युत्क्रम से उपन्यास करना ऊर्ध्वलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? आदि में एक रखकर एकोत्तरवृद्धि द्वारा निर्मित्त पन्द्रह पर्यन्त की श्रेणी में परस्पर गुणा करने पर प्राप्त राशि में से आदि और अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष भंगों को ऊर्ध्वलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी कहते हैं । अथवा औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्व संबन्धी पूर्वानुपूर्वी क्या है ? एकप्रदेशावगाढ, द्विप्रदेशावगाढ यावत् दसप्रदेसावगाढ यावत् असंख्यातप्रदेशावगाढ के क्रम से क्षेत्र के उपन्यास को पूर्वानुपूर्वी
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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