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________________ अनुयोगद्वार-१०८ १८३ हैं । इसी प्रकार दोनों द्रव्यों में भी समझना । संग्रहनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में होते हैं ? आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सादिपारिणामिक भाव में होते हैं । यही कथन शेष दोनों द्रव्यों के लिये भी समझना । राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है । यह अनुगम का वर्णन है । [१०९] औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार कहे हैं, पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । [११०] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धाकाल । इस प्रकार अनुक्रम से निक्षेप करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-अद्धासमय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और धर्मास्तिकाय । इस प्रकार के विलोमक्रम से निक्षेपण करना पश्चानुपूर्वी हैं । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से प्रारंभ कर एक-एक की वृद्धि करने पर छह पर्यन्त स्थापित श्रेणी के अंकों में परस्पर गुणाकार करने से जो राशि आये, उसमें से आदि और और अंत के दो रूपों को कम करने पर अनानुपूर्वी बनती है । [१११] अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध रूप क्रमात्मक आनुपूर्वी को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध यावत् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल । इस प्रकार का विपरीत क्रम से किया जाने वाला न्यास पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से प्रारंभ करके एक-एक की वृद्धि करने के द्वारा निर्मित अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त की श्रेणी की संख्या को परस्पर गुणित करने से निष्पन्न अन्योन्याभ्यस्त राशि में से आदि और अंत रूप दो भंगों को कम करने पर अनानुपूर्वी बनती है । [११२] क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की है । औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी और अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी । [११३] इन दो भेदों में से औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी स्थाप्य है । अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी दो प्रकार की है । नैगम-व्यवहारनयसंमत और संग्रहनयसंमत । [११४] नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? इस के पांच प्रकार हैं । -अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम । नैगमव्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दस प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् संख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है । आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ द्रव्य से लेकर यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक क्षेत्रापेक्षया अनानुपूर्वी है । दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्य क्षेत्रापेक्षया अवक्तव्यक है । तीन आकाशप्रदेशावगाही अनेक-बहुत द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्विया हैं यावत् दसप्रदेशावगाही द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं यावत् संख्यातप्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं, असंख्यात प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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