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अनुयोगद्वार- ४०
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और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर- द्रव्यश्रुत है । इसका दृष्टान्त ? 'यह मधुघट है, यह घृतघट है' ऐसा कहा जाता है ।
[४१] ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर - भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत है । अथवा वह पांच प्रकार काहै- अंडज बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज । अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं । बोंडज किसे कहते ? कपास या रुई से बनाये गये सूत्र को कहते हैं । कीटसूत्र किसे कहते हैं । वह पांच प्रकार का है-पट्ट, मलय, अशुक, चीनांशुक, कृमिरा । वालज सूत्र के पांच प्रकार हैं-और्णिक, औष्ट्रिक, मृगलोमिक, कौतव, किट्टिस । वल्कज किसे कहते हैं ? सन आदि से निर्मित सूत्र को कहते हैं ।
[४२] भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है । यथा - आगमभावश्रुत और नोआगम
भावश्रुत।
[४३] आगमभावश्रुत क्या है ? जो श्रुत का ज्ञाता होने के साथ उसके उपयोग से भी सहित हो, वह आगमभावश्रुत है ।
[४४] नोआगम की अपेक्षा भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है । लौकिक, लोकोत्तरिक । [४५] लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसू७म, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, नाटक आदि अथवा बहत्तर कलायें और सांगोपांग चार वेद लौकिक नोआगमभावश्रुत हैं ।
[४६] लोकोत्तरिक ( नोआगम) भावश्रुत क्या है ? उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले, भूत-भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान - दर्शन के धारक अरिहंत भगवन्तों द्वारा प्रणीत आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिकदशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत,. दृष्टिवाद रूप द्वादशांग, गणिपिटक लोकोत्तरिक नोआगम भावश्रुत हैं ।
[४७-४९] उदात्तादि विविध स्वगं तथा ककारादि अनेक व्यंजनों से युक्त उस श्रुत एकार्थवाचक नाम इस प्रकार हैं-श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना, आगम, ये सभी श्रुत के एकार्थक पर्याय हैं । इस प्रकार से श्रुत की वक्तव्यता समाप्त हुई।
[५० ] स्कन्ध क्या है ? स्कन्ध के चार प्रकार हैं । नामस्कन्ध, स्थापनास्कन्ध,
द्रव्यस्कन्ध, भावस्कन्ध ।
[५१] नामस्कन्ध क्या है ? जिस किसी जीव या अजीव का यावत् स्कन्ध यह नाम रखा जाता है, वह नामस्कन्ध हैं। स्थापनास्कन्ध क्या है ? काष्ठादि में 'यह स्कन्ध है' इस प्रकार का जो आरोप किया जाता है, वह स्थापनास्कन्ध है । नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम यावत्कथिक होता है परन्तु स्थापना इत्वरिक और यावत्कथिक दोनों होती है ।