________________
महानिशीथ-७/-/१३८२
ऐसा करते हुए तब कालवेला प्राप्त हो उस समय देवसिक अतिचार में बताए जो कोइ अतिचार सेवन हुए हो उसका निन्दन, गर्हण, आलोचन, प्रतिक्रमण करने के बावजूद भी, जो कुछ कायिक, वाचिक, मानसिक, उत्सूत्र, आचरण करने से, उन्मार्ग का आचरण करने से, अकल्प्य का सेवन करने से, अकरणीय का समाचरण करने से, दुान या दुष्ट चिन्तवन करने से अनाचार का सेवन करने से, न इच्छने के लायक आचरण करने से, अश्रमण प्रायोग्य व्यवहार आचरण करने से, ज्ञान के लिए, दर्शन के लिए, चारित्र के लिए, श्रुत के लिए, सामायिक के लिए, तीन गुप्ति. चार कषाय, पाँच महाव्रत, छ जीवनिकाय, साँत तरह की पिंड़ेषणा आदि आँठ प्रवचनमाता, नौ तरह की ब्रह्मचर्य की गुप्ति, दश तरह का श्रमण धर्म,
आदि और दुसरे काफी आलापक आदि में बताए गए का खंडन विराधन हुआ हो और उस निमित्त से आगम के कुशल ऐसे गीतार्थ गुरु के बताए हुए प्रायश्चित् यथाशक्ति अपना बल वीर्य पुरुषार्थ पराक्रम छिपाए बिना अशठरूप से दीनता रहित मानस से अनशन आदि बाह्य
और अभ्यंतर बारह तरह के तपकर्म को गुरु के पास फिर से अवधारण निश्चित् करके काफी प्रकटरूप से तहत्ति ऐसा कहकर अभिनन्दे गुरु के दिए हुए प्रायश्चित् तप का एक-साथ या टुकड़े-टुकड़े हिस्से करके सम्यग् तरह से न दो तो वो भिक्षु अवंदनीय बनते है ।
हे भगवंत ! किस वजह से खंड खंड तप यानि बीच में पारणा करके विसामा लेने के लिए तप प्रायश्चित सेवन करे ? हे गौतम ! जो भिक्षु छ महिने, चार महिने, मासक्षमण एक साथ करने के लिए समर्थ न हो वो छठ, अठ्ठम, चार, पाँच, पंद्रह दिन ऐसे उपवास करके भी वो प्रायश्चित् चूका दे । दुसरा ओर भी कोइ प्रायश्चित् उसके भीतर समा जाए, इस वजह से खंडा-खंड़ी बीच मे विसामा लेने के लिए शक्ति अनुसार तप-प्रायश्चित् का सेवन करे । ऐसा करते-करते दिन के मध्याह्न के समय होनेवाले पुरीमड्ड के वक्त में अल्पसमय बाकी रहा । उस अवसर पर यदि कोइ प्रतिक्रमण करते हुए, वंदन करते हुए, स्वाध्याय करते हुए, परिभ्रमण करते, चलते, जाते, खड़े रहते, बैठते, उठते, तेऊकाय का स्पर्श होता हो और भिक्षु उसके अंग न खींचे, संघट्टा न रोके, तो उपवास, दुसरों को भी यथायोग्य प्रायश्चित् में प्रवेश करवाए या अपनी शक्ति अनुसार तपकर्म का सेवन न करे तो उसे दुसरे दिन चार गुना प्रायश्चित् बताए, जो वांदते हो या प्रतिक्रमण करते हो उसकी आड़ लेकर साँप या बिल्ली जाए तो उसका लोच करना । या दुसरे स्थान पर चले जाए । उसकी तुलना में उग्रतप में रमणता करना । यह बताए हुए विधान न करे तो गच्छ के बाहर नीकालना ।
जो भिक्षु उस महा उपसर्ग को सिद्ध करनेवाला, पेदा करनेवाला, दुर्निमित और अमंगल का धारक या वाहक हो, उसे गच्छ बाहर करने के उचित समजना । जो पहली या दुसरी पोरिसी मे इधर-ऊधर भटकता हो, गमन करता हो, अनुचित्त समय मे घुमनेवाला, छिद्र देखनेवाला । यदि वो चार आहार को-चोविहार के पच्चक्खाण न करे तो छठ्ठ, दिन में स्थंडिल स्थान की प्रतिलेखना करके रात मे जयणा पूर्वक मातृ या स्थंडिल वोसिरावे तो म्लाने एकासन, दुसरे को तो छठ का ही प्रायश्चित्, यदि स्थंडिल स्थान दिन में जीवजन्तु रहित जाँच न की हो, और भाजन, पूंजना-प्रमार्जन न किया हो, स्थान न देखा हो, मातृ करने का भाजन भी जयणा से न देखा हो और रात को, ठल्ला या मातृ परठवे तो प्लान को एकासन, बाकी को दुवालस-पाँच उपवास या प्लान को मिच्छामि दुक्कड़म् ।