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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जगह में जो कुछ भी वासिरावे तो उपस्थापन ।
उसके अनुसार वसति उपधि को प्रतिलेखन करके समाधिपूर्वक क्षुब्ध हुए बिना परवे फिर एकाग्र मानसवाला सावधानतापूर्वक विधि से सूत्र और अर्थ का अनुसरण करते हुए इरियावहियं न प्रतिक्रमे तो एकासन, मुहपत्ति ग्रहण किए बिना इरिया प्रतिक्रमण वंदन प्रतिक्रमण करे, मुहपति रखे बिना वँगासा खाए, स्वाध्याय करे, वाचना दे । इत्यादिक सर्व स्थान में पुरिमुह उस अनुसार इरिया प्रतिक्रम करके सुकुमाल सुवाली डसीओ युक्त चिकनाई रहित सख्त न हो वैसी अच्छी इँसीवाले कीड़ो से छिद्रवाला न हो, अखंड़ दांड़ीवाले दंड़ पुच्छणक से वसति की प्रमार्जना न करे तो एकासन, झाडु से वसति का कचरा साफ करे तो उपस्थापन, वसति में दंड़ पुच्छणक देकर इकट्ठा किए गए कूड़े की परठवना न करे तो उपवास, प्रत्युपेक्षणा किए बिना कूड़ा परठवे तो पाँच उपवास लेकिन षट्वादिका या कोइ जीव हो तो या कोइ जीव न हो तो उपस्थापन, वसति में रहे कूड़े का अवलोकन करने से यदि उसमें षट्पदिका हो उसे ढूँढ़कर अलग करके इकट्ठा करके ग्रहण करे वैसा प्रायश्चित् सर्व भिक्षु के बीच हिस्से करके बाँटा न हो तो एकासन देना । यदि खुद ही षट्पदिका ग्रहण करके प्रायश्चित् विभाग पूर्वक न दे । अन्योन्य भीतर से एक दुजे को न अपनाए तो पारंचित ।
उस अनुसार वसति दंड़ पुच्छणक से विधिवत् प्रमार्जन करके काजा को अच्छी तरह से अवलोकन करके षट्पदिका को काजा में से अलग करके काजा परठवे सम्यग् विधि सहित काफी उपयोग और एकाग्र मानसवाला सूत्र, अर्थ और तदुभय का स्मरण करनेवाला जो भिक्षु इरिया प्रतिक्रम न करे तो आयंबिल और उपवास का प्रायश्चित्त ।
उस अनुसार हे गौतम! आगे बताएंगे उसका प्रतिक्रमण करे दिन के पहले पहोर की देढ़ घड़ी न्युन ऐसे समय में जो भिक्षु गुरु के पास विधि सहित सज्झाय संदिसाऊं - ऐसा कहकर एकाग्र चित्त से श्रुत में उपयोगवाला दृढघृति पूर्वक एक घड़ी न्युन प्रथम पोरसी में जावजीव के अभिग्रह सहित रोज अपूर्वज्ञान ग्रहण न करे उसे पाँच उपवास का प्रायश्चित् । अपूर्वज्ञान पढ़ना न हो शके तो पहले का पढ़ा हुआ हो उस सूत्र अर्थ तदुभय को याद करते हुए एकाग्र मन से परावर्तन न करे और भक्तवर्ग स्त्री, राजा, चोर, देश आदि की चिचित्र विकथा करने में समय पसार करके मन मनाए तो वो वंदन करने के योग्य नहीं । पहले पढ़े हुए नहीं है, अपूर्वज्ञान ग्रहण करना नामुमकीन हो उन्हे भी एक घटिकान्युन ऐसी प्रथम पोरीसी में पंचमंगल का फिर से परावर्तन करना हो, ऐसा न करे और विकथा ही करे या निरर्थक बाहर की फिझूल बाते सुना करे तो वह अवंदनीय है ।
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उस अनुसार एक पल न्युन प्रथम पोरिसी में जो भिक्षु एकाग्रचित्त से स्वाध्याय करके उसके बाद पात्रा, मात्रक, कामढ़-पात्र या वस्त्र विशेष, भाजन, उपकरण आदि को अव्याकुलपन से उपयोग सहित विधि से प्रतिलेखना न करे तो उसे उपवास का प्रायश्चित् समजना । अब भिक्षु शब्द और प्रायश्चित् शब्द यह दोनों शब्द को हर एक पद के साथ जुड़ना ।
यदि वो भाजन उपकरण का उपयोग न किया हो तो उपवास लेकिन अव्याकुल उपयोग विधि से प्रतिलेखना किए बिना उपभोग करे तो पाँच उपवास । इस क्रम से प्रथम पोरिसी पूर्ण की । दुसरी पोरिसी में अर्थग्रहण न करे तो पुरिमढ यदि व्याख्यान हो और उसे श्रवण न करे तो अवंदनीय, व्याख्यान की कमी में वाचनादिक स्वाधयाय न करे तो पाँच उपवास ।