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________________ ८४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उस प्रकार प्रथम पोरिसी में, दुसरी पोरिसी में सूत्र और अर्थ का अध्ययन छोड़कर जो स्त्री कथा, भक्तकथा, देशकथा, राजकथा, चोरकथा या गृहस्थ की पंचात की कथा करे या दुसरी अंसबद्ध कथा करे, आर्त रौद्रध्यान की उदीरणा करवानेवाली कथा करे, वैसी प्रस्तावना उदीरणा करे या करवाए वो एक साल तक अवंदनीय, किसी वैसे बड़ी वजह के वश से प्रथम या दुसरी पोरिसी में एक पल या आधा पल कम स्वाध्याय हुआ हो तो ग्लान को मिच्छामि दक्कडम | दसरों को निव्विगड. अति निष्ठरता से या ग्लान से यदि किसी भी तरह से कोई भी कारण उत्पन्न होने से बार-बार गीतार्थ गुरु ने मना करने के बावजूद आकस्मिक किसी दिन बैठे-बैठे प्रतिक्रमण किया हो तो एक मास अवंदनीय । चार मास तक उसे मौनव्रत रखना चाहिए । यदि कोइ प्रथम पोरिसी पूर्ण होने से पहले और तीसरी पोरिसी बीत जाने के बाद भोजन पानी ग्रहण करे और उपभोग करे तो उसे पुरीमड्ड, गुरु के सन्मुख जाकर इस्तेमाल न करे तो चऊत्थं, उपयोग किए बिना कुछ भी ग्रहण करे तो चऊत्थं, अविधि से उपयोग करे तो उपवास, आहार के लिए, पानी के लिए स्वकार्य के लिए, गुरु के कार्य के लिए, बाहर की बाहर की भूमि से नीकलनेवाले गुरु के चरण में मस्तक का संघट्ट करके "आवस्सिआए" पद न कहे, अपने उपाश्रय की वसति के द्वार मे प्रवेश करे निसीह न कहे तो पुरिमड्ड, बाहर जाने की सात वजह के अलावा वसति मे से बाहर नीकले तो उसे गच्छ बाहर कर दो । राग से बाहर जाए तो छेदोपस्थापन, अगीतार्थ या गीतार्थ को शक पेदा हो वैसे आहार, पानी, औषध, वस्त्र, पात्र, दांड़ आदि अविधि से ग्रहण करे और गुरु के पास आलोचना न करे तो तीसरे व्रत का छेद, एक मास तक अवंदनीय और उसके साथ मौनव्रत रखना । आहार पानी औषध या अपने या गुरु के कार्य के लिए गाँव में, नगर में, राजधानी में, तीन मार्ग, चार मार्ग, चौराहा या सभागृह में प्रवेश करके वहाँ कथा या विकथा करने लगे तो उपस्थापन, पाँव में पग रक्षक-उपानह पहनकर वहाँ जाए तो उपस्थापन । उपानह ग्रहण करे तो उपवास, वैसा अवसर खड़ा हो और उपानह को इस्तेमाल न करे तो उपवास । कहीं गया, खड़ा रह और किसी ने सवाल किया उसे कुशलता और मधुरता से कार्य की जुरुरत जितना अल्प, अगर्वित, अतुच्छ, निर्दोष समग्र लोगों के मन को आनन्द देनेवाले, लोक और परलोक के हितकार प्रत्युत्तर न दे तो अवंदनीय, यदि अभिग्रह ग्रहण न किया हो वैसा भिक्षुक सोलह दोष रहित लेकिन सावधयुक्त वचन बोले तो उपस्थापन, ज्यादा बोले तो उपस्थापन, कषाययुक्त वचन बोले तो अवंदनीय । कषाय से उदीरत लोगो के साथ भोजन करे या रात को साथ में रहे तो एक मास तक मौनव्रत, अवंदनीय उपस्थानरूप, दुसरे किसी को कषाय का निमित्त देकर कषाय की उदीरणा करवाए, अल्प कषायवाले को कषाय की वृद्धि करवाके किसी की मर्म-गुप्त बाते खुली कर दे । इस सब में गच्छ के बाहर नीकालना । कठोर वचन बोले, तो पाँच उपवास, कठोर शब्द बोले तो पाँच उपवास, खर, कठोर, कड़े, निष्ठुर, अनिष्ट वचन बोले तो उपस्थापन, गालियाँ दे तो उपवास, क्लेश करनेवाले कलहकंकास, तोफान लड़ाइ करे तो उसे गच्छ के बाहर नीकालना । मकार, चकार, जकरादिवाली गालियाँ अपशब्द बोलो तो उपवास, दुसरी बार बोले तो अवंदनीय, मारे तो संघ के बाहर नीकालना, वध करे तो संघ के बाहर नीकालना, खुदता हो, तोड़ता हो रेंगता, लड़ता, अग्नि जलाता, दुसरो से जलाए पकाए, पकवाए, तो हरएक में संघ से बाहर करना । गुरु को भी
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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