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ओघनियुक्ति-४९७
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का घर लगा हो तो उस पात्रा को प्रहर तक एक ओर रख देना उतने में घर गिर पड़े तो ठीक वरना यदि दुसरा हो, तो पूरा पात्र रख देना । दुसरा पात्र न हो तो पात्रा का उतना हिस्सा काटकर एक ओर रख दे यदि सूखी मिट्टी का घर किया हो और उसमें यदि कीड़े न हो तो वो मिट्टी दूर कर दे । ऋतुबद्ध काल में शर्दी में और गर्मी में प्रात्रादि पड़िलेहेण करके बाँधकर रखना । क्योंकि अग्नि, चोर आदि के भय के समय, अचानक सारे उपधि आदि लेकर सुख से नीकल शके, यदि बाँधकर न रखा हो तो अग्नि में जल जाए । जल्दबाझी में लेने जाए तो पात्रादि तूट जाए, बारिस में इसका डर नहीं रहता ।
[ ४९८-५३२] स्थंडिल अनापात और असंलोक शुद्ध है । अनापात - यानि स्वपक्ष (साधु) परपक्ष (दुसरे) में से किसी का वहाँ आवागमन न हो । असंलोक यानि स्थंडिल बैठे हो वहाँ कोई देख न शके । स्थंडिल भूमि नीचे की प्रकार होती है |
अनापात और असंलोक - किसी का आना-जाना न हो, ऐसे कोइ देखे नहीं । अनापात और संलोक - किसी का आना-जाना न हो लेकिन देख शकते हो । आपात दो प्रकार से स्वपक्ष संयत वर्ग परपक्ष गृहस्थ आदि । स्वपक्ष आपात दो प्रकार से साधु और साध्वी । साधु में संविज्ञ और असंविज्ञ । संविज्ञ में धर्मी और अधर्म । परपक्ष आपात में दो प्रकार - मानव आपात और तिर्यंच आपात । मानव आपात तीन प्रकार से पुरुष, स्त्री और नपुंसक, तिर्यंच आपात तीन प्रकार से पुरुष, स्त्री और नपुंसक उसमें पुरुष आपात तीन प्रकार से राजा श्रेष्ठि और सामान्य । और फिर शौचवादी और अशौचवादी । इस प्रकार
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स्त्री और नपुंसक में भी तीन भेद समजना । उपर्युक्त तिर्यंच आपात दो प्रकार से लड़ाकु और बिना लड़ाकू और फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । हरएक में पुरुष स्त्री और नपुंसक जाति के उसमें निन्दनीय और अनिन्दनीय, मुख्यतया अनापात और असंलोक में स्थंडिल जाना, मनोज्ञ के आपात में स्थंडिल जा शकते है । साध्वी का आपात एकान्त में वर्जन करना । परपक्ष के आपात में दोष, लोगो को होता है कि, हम जिस दिशा में स्थंडिल जाते है वहाँ यह साधुएँ आते है इसलिए हमारा अपमान करनेवाला है या हमारी स्त्रीयों का अभिलाष होगा इसलिए इस दिशा में जाते है । इससे शासन का उड्डाह होता है । शायद पानी कम हो, तो उससे उड्डाह हो । किसी बड़ा-पुरुष साधु को उस दिशा में स्थंडिल जाते देखकर भिक्षा आदि का निरोध करे । श्रावक आदि को चारित्र सम्बन्ध शक पड़े । शायद किसी स्त्री नपुंसक आदि बलात्कार से ग्रहण करे । तिर्यंचके आपात में दोष - लड़ाकु हो तो शींग आदि मारे, काट ले । हिंमत हो तो भक्षण करे । गधी आदि हो तो मैथुन का शक हो जाए । संलोक में दोष तीर्यंचके संलोक में कोई दोष नहीं होते । मानव के संलोक में उड्डाह आदि दोष होते है । स्त्री आदि के संलोक में मूर्छा या अनुराग हो । इसलिए स्त्री आदि के संलोक हो वहाँ स्थंडिल न जाना । आपात और संलोक के दोष हो ऐसा न हो वहीं पर स्थंडिल जाना साध्वीजीओ का आपात हो लेकिन संलोक न हो, वहाँ स्थंडिल जाना चाहिए । स्थंडिल जाने के लिए संज्ञा - कालसंज्ञा तीसरी पोरिसी में स्थंडिल जाना वो । अकालसंज्ञा- तीसरी पोरिसी के सिवा जो समय है उसमें स्थंडिल जाना वो, या गोचरी करने के बाद स्थंडिल जाना वो कालसंज्ञा या अर्थ पोरिसी के बाद स्थंडिल जाना वो कालसंज्ञा । बारिस के अलावा के काल में गल (ईंट आदि का टुकड़ा) लेकर उससे साफ करके तीन बार पानी से आचमन साफ करना । साँप, बिच्छु वींछी आदि के बील न हो, कीड़े,
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