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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
कर्मबंध हो ऐसे व्यापार से रोकने के लिए और शुभ कर्मबंध हो उसमें प्रवृत्त करने के लिए । मन से अच्छा सोचना, वचन से अच्छे निरवद्य वचन बोलना और काया को संयम के योग में रोके रखना । बूरे विचार आदि आए तो उसे रोककर अच्छे विचार में मन को ले जाना । तप-छह बाह्य और छह अभ्यंतर ऐसे बार प्रकार का तप रखना । नियम - यानि इन्द्रिय और मन को काबू में रखना । एवं क्रोध, मान, माया और लोभ न करना । संयम सत्तरह प्रकार से है । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चऊरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय संयम इन जीव की विराधना न हो ऐसा व्यवहार करना चाहिए । अजीव संयम लकड़ा, वस्त्र, किताब, आदि पर लील फूल - निगोद आदि लगा हुआ हो तो उसे ग्रहण न करना । प्रेक्षा संयम चीज देखकर पूंजना प्रमार्जन करने लेना, रखना, एवं चलना, बैठना, शरीर हिलाना आदि कार्य करते हुए देखना, प्रमार्जन करना, प्रत्येक कार्य करते हुए चक्षु आदि से पड़िलेहेणा करना । उपेक्षासंयम दो प्रकार से साधु सम्बन्धी, गृहस्थ सम्बन्धी । साधु संयम में अच्छी प्रकार व्यवहार न करता हो तो उसे संयम में प्रवर्तन करने की प्रेरणा देनी चाहिए, गृहस्थ के पापकारी व्यापार में प्रेरणा न करना । इस प्रकार आराधना करनेवाला पूरी प्रकार आराधक हो शकता है ।
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[ ४७७ - ४९७] सुबह में पड़िलेहण करने के बाद स्वाध्याय करना, पादोन पोरिसी के समय पात्रा की पड़िलेहणा करनी चाहिए । फिर शाम को पादोन पोरिसी चरम पोरिसी में दुसरी बार पड़िलेहणा करनी चाहिए । पोरिसीकाल यकीन से और व्यवहार से ऐसे दो प्रकार से है।
महिना
आषाढ़
सुद- १५
श्रावण
सुद- १५
भादो
सुद- १५
आसो
सुद- १५
कार्तिक सुद- १५
मागसर
सुद- १५
पोष
सुद- १५
महा
सुद- १५
फागुन
सुद- १५
चैत्र
सुद- १५
वैशाख सुद- १५ जेठ
सुद- १५
पोरिसी
पगला - अंगुल
२-७
२-४
२-५
३-०
३-४
३-८
४-०
३-८
३-४
३-०
२-८
२-४
चरम पोरिसी पगला - अंगूल
२-६
२-१०
३-४
३-८
४-०
४-६
४-१०
४-६
४-०
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३-८
३-४
२-१०
पात्रा की पड़िलेहण करते समय पाँच इन्द्रिय का उपयोग अच्छी प्रकार से करना । पात्रा जमीं से चार अंगुल ऊपर रखना । पात्रादि पर भ्रमर आदि हो, तो यतनापूर्वक दूर रखना, पहले पात्रा फिर गुच्छा और उसके बाद पड़ला की पड़िलेहेणा करनी । पड़िलेहण का समय गुजर जाए तो, एक कल्याणक का प्रायश्चित् आता है । यदि पात्रा को गृहकोकिला आदि