________________
ओघनियुक्ति-३५५
१४९
में उतरने से रात को आते-जाते किसी पर गिर पड़े, जागते ही उसे चोर की शंका हो । रात को नहीं देख शकने से युद्ध हो, उसमें पात्र आदि तूट जाए इसलिए संयम-आत्मविराधना हो, इसलिए छोटी वसति में नहीं उतरना चाहिए । प्रमाणसर वसति में उतरना वो इस प्रकार एक एक साधु के लिए तीन तीन हाथ मोटी जगह रखे एक हाथ को चार अंगूल बड़ा संथारा फिर बीस अंगुल जगह खाली फिर एक हाथ जगह में पात्रादि रखना, उसके बाद दुसरे साधु के आसन आदि करना । पात्रादि काफी दूर रखे तो बिल्ली, चूहाँ आदि से रक्षा न हो शके | काफी पास में पात्रादि रखे तो शरीर घुमाते समय ऊपर-नीचे करने से पात्रादि को धक्का लगे तो पात्रादि तूट जाए । इसलिए बीस अंगूल का फाँसला हो तो, किसी गृहस्थ आदि झोर करके बीच में सो जाए, तो दूसरे दोष लगे । तो ऐसे स्थान के लिए वसति का प्रमाण इस प्रकार जानना । एक हाथ देह, बीस अंगुल खाली, आँठ अंगुल में पात्रा, फिर बीस अंगुल खाली, फिर दुसरे साधु, इस प्रकार तीन हाथ से एक साधु से दुसरा साधु आता है । बीच में दो हाथ का अंतर रहे । एक साधु से दुसरे साधु के बीच दो हाथ की जगह रखना । दो हाथ से कम फाँसला हो तो, दुसरों को साधु का स्पर्श हो जाए तो भुक्तभोगी की पूर्व क्रीड़ा का स्मरण हो जाए । कुमार अवस्था में दीक्षा ली हो तो उसे साधु का स्पर्श होने से स्त्री का स्पर्श कैसे होंगे? उसकी नियत जगे । इसलिए बीच में दो हाथ का फाँसला रखना चाहिए, इससे एकदुसरे को कलह आदि भी न हो । दीवार से एक हाथ दूर संथारा करना । पाँव के नीचे भी आने-जाने का रास्ता रखना । बड़ी वसति हो तो दीवार से तीन हाथ दूर संथारा करना । प्रमाणयुक्त वसति न हो तो छोटी वसति में रात को यतनापूर्वक आना जाना । पहले हाथ से परामर्श करके बाहर नीकलना । पात्रादि खड्डा हो तो उसमें रखना । खड्डा न हो तो रस्सी बाँधकर उपर लटका दे । बड़ी वसति में ठहरना पड़े तो साधु को दूर-दूर सो जाना । शायद वहाँ कुछ लोग आकर कहे कि, “एक ओर इतनी जगह में सो जाओ । तो साधु एक ओर हो जाए, वहाँ परदा या खड़ी से निशानी कर ले। वहाँ दुसरे गृहस्थ आदि हो तो, आते जाने प्रमार्जना आदि न करे । और 'आसज्जा-आसज्जा' भी न करे । लेकिन खाँसी आदि से दुसरों को बताए ।
[३५६-३८७] स्थानस्थित-गाँव में प्रवेश करना हो, उस दिन सुबह का प्रतिक्रमण आदि करके, स्थापना कुल, प्रत्यनीक कुल, प्रान्तकुल आदि का हिस्सा करे इसलिए कुछ घर में गोचरी के लिए जाना, कुछ घर में गोचरी के लिए न जाना | फिर अच्छे सगुन देखकर गाँव में प्रवेश करे । वसति में प्रवेश करने से पहले कथालब्धिसम्पन्न साधु को भेजे । वो साधु गाँव में जाकर शय्यातर के आगे कथा करे फिर आचार्य महाराज का आगमन होने पर खड़े होकर विनय सँभाले और शय्यातर कहे कि, यह हमारे आचार्य भगवंत है । आचार्य भगवंत कहे कि, इस महानुभावने हमको वसति दी है । यदि शय्यातर आचार्य के साथ बात-चीत करे तो अच्छा, न करे तो आचार्य उसके साथ बात-चीत करे क्योंकि यदि आचार्य शय्यातर के साथ बात न करे, तो शय्यातर को होता है कि, यह लोग भी योग्य नहीं जानते ।' वसति में आचार्य के लिए तीन जगह रखकर स्थविर साधु दुसरे साधुओ के लिए रत्नाधिक के क्रम से योग्य जगह बाँट दे । क्षेत्रप्रत्युपेक्षक आए हुए साधुओ को ठल्ला, मात्रा की भूमि, पात्रा रंगने की भूमि, स्वाध्याय भूमि आदि दिखाए और साधु में जो किसी तपस्वी हो, किसी को खाना हो, तो जिनचैत्य दर्शन करने के लिए जाते हुए स्थापनाकुल श्रावक के घर दिखाए ।