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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
गाँव साधु के विहारवाला हो या साधु के विहार बगैर हो उसमें साधु के घर भी हो या न भी हो । यदि वो गाँव संविज्ञ साधु के विहारवाला हो तो गाँव में प्रवेश करे । पार्श्वस्थ आदि का हो तो प्रवेश न करे । जिनचैत्य हो तो दर्शन करने के लिए जाए । गाँव में सांभोगिक साधु हो तो उसके लिए आनेवाले लोगों के लिए गोचरी पानी लाकर दे । शायद किसी श्रावक नए आए हुए साधु को गोचरी के लिए जबरदस्ती करे तो वहाँ रहे एक साधु के साथ नए आए हुए साधु को भेजे । उपाश्रय छोटा हो तो नए आए हुए साधु दुसरे स्थान में ठहरे, वहाँ गाँव में रहे साधु उनको गोचरी लाकर दे । सांभोगिक साधु न हो तो आए हुए साधु गोचरी लाकर आचार्य आदि को प्रायोग्य देकर दुसरों का दुसरे उपयोग करे ।
[३३२-३३६] साधर्मिक - आहार आदि का काम पूरा करके और ठल्ला मात्रा की शंका टालकर शाम के समय साधार्मिक साधु के पास जाए, क्योंकि शाम को जाने से वहाँ रहे साधु को भिक्षा आदि काम के लिए आकुलपन न हो । साधु को आते देखकर वहाँ रहे साधु खड़े हो जाए और सामने जाकर दंड-पात्रादि ले ले । वो न दे तो खींच ले । ऐसा करते हुए शायद पात्र नष्ट हो । जिस गाँव में रहे है वो गाँव छोटा हो तो, भिक्षा मिल शके ऐसा न हो और दुपहर में जाने मे रास्ते में चोर आदि का भय हो तो सुबह में दुसरे गाँव में जाए। उपाश्रय में जाते ही निसीहि कहे । वहाँ रहे साधु निसीहि सुनकर सामने आए । खा रहे हो तो मुँह में रखा हुआ नीवाला खा ले, हाथ में लिया हुआ नीवाला पात्रा में वापस रख दे, सामने आकर आए हुए साधु का सम्मान करे । आए हुए साधु संक्षेप से आलोचना करके उनके साथ आहार करे । यदि आए हुए साधुओ ने खाया हो, तो वहाँ रहे साधुओ को कहे कि हमने खा लिया है अब तुम खाओ ।' आए हुए साधु को खाना हो तो यदि वहाँ लाया हुआ आहार बराबर हो तो सभी साथ में खाए और कम हो तो वो आहार आए हुए साधुओ को दे और अपने लिए दुसरा आहार लाकर खाए । आए हुए साधु की तीन दिन से आहार पानी आदि से भक्ति करनी चाहिए । शक्ति न हो तो बालवृद्ध आदि की भक्ति करनी चाहिए।
आए हुए साधु उस गाँव में गोचरी के लिए जाए और वहाँ रहे साधु में तरुण दुसरे गाँव में गोचरी के लिए जाए ।
[३३७-३५५] वसति-तीन प्रकार की होती है । १. बड़ी, २. छोटी, ३. प्रमाणयुक्त। सबसे पहले प्रमाणयुक्त वसति ग्रहण करना । ऐसी न हो तो छोटी वसति ग्रहण करनी, छोटी भी न हो तो बड़ी वसति ग्रहण करना । यदि बड़ी वसति में ठहरे हो तो वहाँ दुसरे लोग दंडपासक, पारदारिका आदि आकर सो जाए, इसलिए वहाँ प्रतिक्रमण, सूत्रपोरिसी, अर्थपोरिसी करते हुए और आते जाते लोगों में किसी असहिष्णु हो तो चिल्लाए, उससे झगड़ा हो, पात्र आदि तूट जाए, ठल्ला मात्रा की शंका रोके तो बिमारी आदि हो, दूर न जा शके, देखी हुई जगह में शंका टाल दे तो संयम विराधना हो । सबके देखते ही शंका टाले तो प्रवचन की लघुता हो । रात को वसति में पूंजते-पूंजते जाए, तो वो देखकर किसी को चोर का शक हो
और शायद मार डाले । सागारिक-गृहस्थ को स्पर्श हो जाए तो उस स्त्री को लगे कि, यह मेरी उम्मीद रखता है। इसलिए दूसरों को कहे कि, 'यह मेरी उम्मीद करता है' सुनकर लोग गुस्सा हो जाए । साधु को मारे, दिन में किसी स्त्री या नपुंसक की खूबसूरती देखकर साधु पर रागवाला बने, इसलिए रात को वहीं सो जाए और साधु को बलात्कार से ग्रहण करे इत्यादि दोष बड़ी वसति में उतरने में रहे है । इसलिए बड़ी वसति में न उतरना चाहिए । छोटी वसति