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________________ १२० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करने से, चार कषाय के वश होने से, पाँच महाव्रत में प्रमाद से, छ जीवनिकाय की रक्षा न करने से, साँत पिंड़ेषणा में दोष लगाने से, आँठ प्रवचन माता में दोष से, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्ति का पालन न करने से, दश तरह के क्षमा आदि श्रमण धर्म का सेवन न करने से (जो अतिचार-दोष हुए हो) और साधु के समाचारी रूप कर्तव्य में प्रमाद आदि करने से जो खंडणा - विराधना की हो उसका मिच्छामी दुक्कड़म यानि वो मेरा पाप मिथ्या हो । [१६] (मैं प्रतिक्रमण करने के यानि पाप से वापस मुँड़ने के समान क्रिया करना) चाहता हूं । ऐर्यापथिकी यानि गमनागमन की क्रिया के दौहरान हुई विराधना से (यह विराधना किस तरह होती है वो बताते है-) आते-जाते, मुझसे किसी त्रसजीव, बीज, हरियाली, झाकल का पानी, चींटी का बिल, सेवाल, कच्चा पानी, कीचड़ या मंकड़े के झाले आदि चंपे गए हो; जो कोइ एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय या पंचेन्द्रिय जीव की विराधना हुइ हो । यह जीव मेरे द्वारा ठोकर लगने से मर गए हो, धूल से ढंक गए हो, जमी के साथ घिसे गए हो, आपस में शरीर टकराए हो, थोड़ा सा स्पर्शित हुआ हो, दुःख उत्पन्न हुआ हो, खेद किया गया हो, त्रास दीया हो, एक स्थान से दुसरे स्थान गए हो या उनके प्राण का वियोग किया गया है - ऐसा करने से जो कुछ भी विराधना हुइ हो उसके सम्बन्धी मेरा तमाम दुष्कृत मिथ्या बने । [१७] मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ । (लेकिन किसका ?) दिन के प्रकामशय्या गहरी नींद लेने से (यहाँ प्रकाम यानि गहरा या संथारा उत्तरपट्टा से या तीन कपड़े से ज्यादा उपकरण का इस्तेमाल करने से, शय्या यानि निंद्रा या संथारीया आदि) हररोज ऐसी नींद लेने से, संथारा में बगल बदलने से और पुनः वही बगल बदलने से, शरीर के अवयव सिकुड़ने से या फैलावा करने से, जूं (आदि जीव को अविधि से छूने से, खाँसते समय मुखवस्त्रिका न रखने से, नाराजगी से वसति के लिए बकवास करने से, छींक या बगासा खाते समय मुख वस्त्रिका से जयणा न करने से, किसी भी चीज को प्रमार्जन किए बिना छूने से, सचित्त रजवाली चिज को छूने से, नींद में आकुल-व्याकुलता से कुस्वप्न या दुस्वप्न आने से, स्त्री के साथ अब्रह्म सेवन सम्बन्धी रूप को देखने के अनुराग से - मनोविकार से - आहार पानी इस्तेमाल करने के समान व्यवहार से जो आकुल-व्याकुलता हुइ हो - उस तरह से दिन के सम्बन्धी जो कोई अतिचार लगे हो वो मेरा पाप मिथ्या हो । [१८] मैं प्रतिक्रमण करता हैं । (किसका ?) भिक्षा के लिए गोचरी घुमने में, लगे हुए अतिचार का (किस तरह से ?) सांकल लगाए हुए या सामान्य से बँध किए दरवाजे-जाली आदि खोलने से कूत्ते-बछड़े या छोटे बच्चे का (केवल तीर्यंच का) संघट्टा-स्पर्श करने से, किसी बरतन आदि में अलग नीकालकर दिया गया आहार लेने से. अन्य धर्मी मल भाजन में से चार दिशा में जो बली फेंके वैसा करके वापस देने से, अन्य भिक्षु के लिए स्थापित किए गए आहार में से देते, आधाकर्म आदि दोष की शंकावाले आहार से, शीघ्रता से ग्रहण करने से अकल्पनीय चीज आ जानेसे, योग्य गवेषणा न करने से, दोष का सर्व तरीके से न सोचने से, जीववाली चीज का भोजन करने से, सचित बीज या लीलोतरी वाला भोजन करने से, भिक्षा लेने से पहले या बाद में गृहस्थ हाथ-बरतन आदि साफ करे उस प्रकार से लेने से, सचित्त ऐसा पानी या रज के स्पर्शवाली चीज लेने से, जमीं पर गिरते हुए भिक्षा दे उसे लेने
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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