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महानिशीथ-८/२/१५१३
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पाकर फिर यदि उसमें अतिचार लगाए तो बोधिपन दुःख से पाए । हे गौतम ! यह उस ब्राह्मणी के जीव ने इतनी अल्प माया की थी उससे ऐसे दारुण विपाक भुगतने पड़े ।
[१५१४] हे भगवंत ! वो महीयारी - गोकुलपति बीवी को उन्होंने डांगसुं भाजन दिया कि न दिया ? या तो वो महीयारी उनके साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाइ थी ? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समजकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया । फिर मधु, दूध खाकर सुज्ञश्री ने पूछा कि कहाँ जाओगे ? गोकुल मे दुसरी बात उसे यह बताइ कि यदि तुम मेरे साथ विनय से व्यवहार करोगे तो तुम्हें तुम्हारी इच्छा के अनुसार तीन बार गुड़ और घी से भरे हररोज दूध और भोजन दूँगा । जब ऐसा कहा तब सुज्ञश्री उस महियारी के साथ गइ । परलोक अनुष्ठान करने में बेचैन और शुभस्थान में पिरोए मानसवाले उस गोविंद ब्राह्मण आदि ने इस सुज्ञश्री को याद भी न किया । उसके बाद जिस प्रकार उस महियारी ने कहा था ऐसी घी-शक्कर से भरी ऐसी खीर आदि का खाना देती थी ।
__ अब किसी तरह से कालक्रम बारह साल का भयानक अकाल का समय पूरा हुआ । सारा देश ऋद्धि-समृद्धि से स्थिर हुआ अब किसी समय अनमोल श्रेष्ठ सूर्यकान्त चन्द्रकान्त
आदि उत्तम जाति के बीस मणिरत्न खरीदकर सुज्ञशीव अपने देश में वापस जाने के लिए नीकला है । लम्बा सफर करने से खेद पाए हुए देहवाला जिस रास्ते से जा रहा था उस रास्ते में ही भवितव्यता योग से उस महीयारी का गोकुल आते ही जिसका नाम लेने में भी पाप है ऐसा वो पापमतिवाला सुज्ञशीव काकतालीय न्याय से आ पहुँचा । समग्र तीन भुवन में जो स्त्री है उसके रूप लावण्य और कान्ति से बढ़ियाँ रूप कान्ति लावण्यवाली सुज्ञश्री को देखकर इन्द्रिय की चपलता से अनन्त दुःखदायक किंपाक फल की उपमावाले विषय की रम्यता होने से, जिसने समग्र तीनों भुवन को जीता है ऐसे कामदेव के विषय में आए महापापकर्म करनेवाले सुज्ञशीवने उस सुज्ञश्री का कहा कि हे बालिका ! यदि यह तुम्हारे माता-पिता अच्छी तरह से अनुमति दे तो में तुमसे शादी करूँ । दुसरा तुम्हारे बँधुवर्ग को भी दाद्धि रहित करूँ। फिर तुम्हारे लिए पूरे सों पल (एक नाप है) प्रमाण सुवर्ण के अलंकार बनवाऊँ । जल्द यह बात तुम्हारे माँ-बाप को बताओ, उसके बाद हर्ष और संताप पानेवाली उस सुज्ञश्री ने उस महीयारी को यह हकीकत बताइ । इसलिए महियारी तुरन्त सुज्ञशीव के पास आकर कहने लगी कि अरे ! तुम तो कहते थे ऐसे मेरी बेटी के लिए सो-पल प्रमाण सुवर्ण बताओ, तब उसने श्रेष्ठ मणि दिखाए । तब महियारी ने कहा कि सो सौनेया दो । इस बच्चे को खेलने के लिए पाँचिका का प्रयोजन नहीं है तब सुज्ञशीव ने कहा कि-चलो, हम नगर में जाकर इस पाँचिका का प्रभाव कैसा है उसकी वहाँ के व्यापारी के पास झाँच करे । उसके बाद प्रभात के समय नगर में जाकर चन्द्रकान्त और सूर्यकान्त मणि के श्रेष्ठ जोड़ला राजा को दिखाया । राजाने मणि रत्न के परीक्षक को बुलाकर कहा कि इस श्रेष्ठ मणि का मूल्य दिखाओ । यदि मूल्य की तुलना - परीक्षा की जाए तो उसका मूल्य बताने के लिए समर्थ नहीं है । तब राजाने कहा अरे माणिक्य के शिष्य ! यहाँ कोई ऐसा पुरुष नहीं कि जो इस मूणि का मूल्य जाँच कर शके । तो अब कीमत करवाए बिना उपर के दश करोड़ द्रव्य ले जा । तब सुज्ञशीव ने कहा कि महाराज की जैसी कृपा हो वो सही है । दुसरी एक विनती यह है कि यह नजदीकी