________________
२१२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पुण्यवंत है वो ही इसे पढ़ शकते है ।
[४७९] हे भगवंत ! उस कुशील आदि के लक्षण किस तरह के होते है ? कि जो अच्छी तरह जानकर उसका सर्वथा त्याग कर शके ।
[४८०-४८१] हे गौतम ! आम तोर पर उनके लक्षण इस प्रकार समजना और समजकर उसका सर्वथा संसर्ग त्याग करना, कुशील दो सौ प्रकार के जानना, ओसन्न दो तरह के बताए है । ज्ञान आदि के पासत्था, बाईश तरह से और शबल चारित्रवाले तीन तरह के है । हे गौतम ! उसमें जो दो सौ प्रकार के कुशील है वो तुम्हें पहले कहता हूँ कि जिसके संसर्ग से मुनि पलभर में भ्रष्ट होता है ।
[४८२-४८४] उसमें संक्षेप से कुशील दो तरहका है । १. परम्परा कुशील, २. अपरम्परा कुशील, उसमें जो परम्परा कुशील है वो दो तरह का है । १. साँत-आँठ गुरु परम्परा कुशील और २. एक, दो, तीन गुरु परम्परा कुशील । और फिर जो अपरम्परा कुशील है वो दो तरीके का है । आगम से गुरु परम्परा से क्रम या परिपाटी में जो कोई कुशील थे वो ही कुशील माने जाते है ।
[४८५-४८६] नोआगम से कुशील कई तरह के है वो इस प्रकार ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील, तप कुशील, वीर्याचार में कुशील । उसमें जो ज्ञान कुशील है वो तीन प्रकार के है । प्रसस्ताप्रशस्त ज्ञानकुशील, अप्रशस्त ज्ञान कुशील और सुप्रशस्त ज्ञान कुशील।
[४८७] उसमें जो प्रशस्ताप्रशस्त ज्ञान कुशील है उसे दो तरह के जानो आगमसे और नो आगमसे । उसमें आगमसे विभंग ज्ञानी के प्ररूपेल प्रशस्ताप्रशस्त चीज समूहवाले अध्ययन पढ़ाना वह अध्ययन कुशील, नोआगम से कई तरह के प्रशस्ता-प्रशस्त परपाखंड़ के शास्त्र के अर्थ समूह को पढ़ना, पढ़ाना, वाचना, अनुप्रेक्षा करने समान कुशील ।
[४८८] उसमें जो अप्रशस्त ज्ञान कुशील है वो २९ प्रकार के है । वो इस तरह१. सावद्यवाद विषयक मंत्र, तंत्र का प्रयोग करने समान कुशील । २. विद्या-मंत्र-तंत्र पढ़ाना-पढ़ना यानि वस्तुविद्या कुशील । ३. ग्रहण-क्षत्र चार ज्योतिष शास्त्र देखना, कहना, पढ़ाना समान लक्षण कुशील ।
४. निमित्त कहना | शरीर के लक्षण देखकर कहना, उसके शास्त्र पढ़ाना समान लक्षण कुशील ।
५. शकुन शास्त्र लक्षण शास्त्र कहना पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ६. हस्ति शिक्षा बतानेवाले शास्त्र पढ़ना पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ७. धनुर्वेद की शिक्षा लेना उसके शास्त्र पढ़ाना समान लक्षण कुशील ।
८. गंधर्ववेद का प्रयोग शीखलाना यानि रूप कुशील ९. पुरुष-स्त्री के लक्षण कहनेवाले शास्त्र पढ़ानेवाले रूपकुशील ।
१०. कामशास्त्र के प्रयोग कहनेवाले, पढ़ानेवाले रूप कुशील ।। ११. कौतुक इन्द्रजाल के शस्त्र का प्रयोग करनेवाले पढ़ानेवाले कुशील । १२. लेखनकला, चित्रकला शीखलानेवाले रूप कुशील ।