________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
तीनों काल में तीनों तरीके से प्रायश्चित् दो ... गर्मी रूक्ष काल है, शर्दी साधारण काल है और वर्षा स्निग्ध काल है । गर्मी में क्रम से जघन्य एक उपवास, मध्यम छठ्ठ, उत्कृष्ट अठ्ठम, शर्दी 1 में क्रम से छठ्ठ-अठ्ठम, चार उपवास, वर्षा में क्रम से अठ्ठम चार उपवास पाँच उपवास तप प्रायश्चित् देना सूत्र व्यवहार उपदेश मुताबिक इस तरह नौ तरीके से व्यवहार है ।
[ ६८ ] निरोगी और ग्लान ऐसे भाव जानकर निरोगी को कुछ ज्यादा और प्लान को थोड़ा कम प्रायश्चित् दो । जिसकी जितनी शक्ति हो उतना प्रायश्चित् उसे दो द्रव्य-क्षेत्र भाव की तरह काल को भी लक्ष्य में लो ।
I
१७४
[६९-७२] पुरुष में कोई गीतार्थ हो कोई अगीतार्थ हो, कोई सहनशील हो, कोई असहनशील हो, कोई ऋजु हो कोई मायावी हो, कुछ श्रद्धा परिणामी हो, कुछ अपरिमाणी हो और कुछ अपवाद का ही आचरण करनेवाले अतिपरिणामी भी हो, कुछ धृति - संघयण और उभय से संपन्न हो, कुछ उससे हिन हो, कुछ तप शक्तिवाले हो, कुछ वैयावच्ची हो, कुछ दोनों ताकतवाले हो, कुछ में एक भी शक्ति न हो या अन्य तरह के हो... आचेलक आदि कल्पस्थित, परिणत, कृतजोगी, तरमाण (कुशल) या अकल्पस्थित, अपरिणत, अकृतजोगी या अतरमाण ऐसे दो तरह के पुरुष हो उसी तरह कल्पस्थित भी गच्छवासी या जिन कल्पी हो शके । इन सभी पुरुष में जिसकी जितनी शक्ति गुण ज्यादा उसे अधिक प्रायश्चित् दो और हीन सत्त्ववाले को हीनतर प्रायश्चित् दो और सर्वथा हीन को प्रायश्चित् न दो उसे जीत व्यवहार मानो ।
[७३] इस जीत व्यवहार में कईं तरह के साधु है । जैसे कि अकृत्य करनेवाले, अगीतार्थ, अज्ञात इस कारण से जीत व्यवहार में निवि से अठ्ठम पर्यन्त तप प्रायश्चित् है । ( अब " पड़िसेवणा” बताते है ।)
[७४] हिंसा, दौड़ना, कूदना आदि क्रिया, प्रमाद या कल्प का सेवन करनेवाले या द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव मुताबिक प्रतिसेवन करनेवाले पुरुष (ईस प्रकार पड़िसेवण यानि निषिद्ध चीज को सेवन करनेवाले कहा ।)
[ ७५ ] जिस प्रकार मैंने जीत व्यवहार अनुसार प्रायश्चित् दान कहा। वो क्या प्रमाद सहित सेवन करनेवाले को यानि निषिद्ध चीज सेवन करनेवाले को भी दे ? इस प्रायश्चित् में प्रमाद-स्थान सेवन करके एक स्थान वृद्धि करना यानि सामान्य से जो प्रायश्चित् निवि से अम पर्यन्त कहा उसके बजाय प्रमाद से सेवन करनेवाले को पुरीमड्ड से चार उपवास पर्यन्त (क्रमश: एक ज्यादा तप) देना चाहिए ।
[ ७६ ] हिंसा करनेवाले को एकासणा से पाँच उपवास देना या छ स्थान या मूल प्रायश्चित् दो । कल्प पड़िसेवन करके यानि यतना पूर्वक सेवन किया हो तो प्रतिक्रमण प्रायश्चित् या तदुभय-आलोचना और प्रतिक्रमण प्रायश्चित् देना ।
[७७] आलोचनकाल में भी यदि गोपवे या छल करे तो उस संकिलष्ट परिणामी को पुनः अधिक प्रायश्चित् दो । यदि यदि संवेग परीणाम से निंदा-गर्हा करे तो वो विशुद्ध भाव जानकर कम प्रायश्चित् दो मध्यम परिणामी को उतना ही प्रायश्चित् दी ।
[७८] उस प्रकार ज्यादा गुणवान द्रव्य-क्षेत्र काल भाववाले दिखे तो गुरु सेवार्थे ज्यादा प्रायश्चित् दो । यदि द्रव्य क्षेत्र काल भावहीन लगे तो कम प्रायश्चित् दो और अति अल्प लगे तो प्रायश्चित् न दो ।