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दशाश्रुतस्कन्ध-४/१३
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के लिए वापस करना कहकर पीठ फलक शय्या संथारा ग्रहण करना, काल को आश्रित करके कालोचित कार्य करना, करवाना, गुरुजन का उचित पूजा-सत्कार करना ।
[१४] (आँठ तरह की संपदा के वर्णन के बाद अब गणि का कर्तव्य कहते है । आचार्य अपने शिष्य को आचार-विनय, श्रुत विनय, विक्षेपणा - (मिथ्यात्व में से सम्यकत्व में स्थापना करने समान) विनय और दोष निर्घातन-(दोष का नाश करने समान) विनय ।
वो आचार विनय क्या है ? आचार-विनय (पाँच तरह के आचार या आँठ कर्म के विनाश करनेवाला आचार यानि आचार विनय) चार प्रकार से कहा है । संयम के भेद प्रभेद का ज्ञान करवाकर आचरण करवाना, गण-समाचारी, साधु संघ को सारणा-वारणा आदि से सँभालना-ग्लान को, वृद्ध को सँभालने के लिए व्यवस्था करना-दुसरे गण के साथ उचित व्यवहार करना, कब-कौन-सी अवस्था में अकेले विहार करना उस बात का ज्ञान करवाना ।
वो श्रुत विनय क्या है ? श्रुत विनय चार प्रकार से बताया है । जरुरी सूत्र पढ़ाना, सूत्र के अर्थ पढ़ाना, शिष्य को हितकर उपदेश देना, प्रमाण, नय, निक्षेप, संहिता आदि से अध्यापन करवाना, यह है श्रुत विनय ।
विक्षेपणा विनय क्या है ? विक्षेपणा विनय चार प्रकार से बताया है । सम्यक्त्व रूप धर्म न जाननेवाले शिष्य को विनय संयुक्त करना, धर्म से च्युत होनेवाले शिष्य को धर्म में स्थापित करना, उस शिष्य को धर्म के हित के लिए, सुख, सामर्थ्य, मोक्ष या भवान्तर में धर्म आदि की प्राप्ति के लिए तत्पर करना, यह है विक्षेपणा विनय ।
दोष निर्धातन विनय क्या है ? दोष निर्धातन विनय चार प्रकार से बताया है । वो इस प्रकार-क्रुद्ध व्यक्ति का क्रोध दूर करवाए, दुष्ट-दोषवाली व्यक्ति के दोष दूर करना, आकांक्षा, अभिलाषावाली व्यक्ति की आकांक्षा का निवारण करना, आत्मा को सुप्रणिहित श्रद्धा आदि युक्त रखना । यह है दोष-निर्धातन विनय ।
[१५] इस तरह के शिष्य की (ऊपर बताए अनुसार) चार प्रकार से विनय प्रतिपत्ति यानि गुरु भक्ति होती है । वो इस प्रकार-संयम के साधक वस्त्र, पात्र आदि पाना, बाल प्लान अशक्त साधु की सहायता करना, गण और गणी के गुण प्रकाशित करना, गण का बोझ वहन करना ।
उपकरण उत्पादनपन क्या है ? वो चार प्रकार से बताया है-नवीन उपकरण पाना, पुराने उपकरण का संरक्षण और संगोपन करना, अल्प उपकरणवाले को उपकरण की पूर्ति करना, शिष्य के लिए उचित विभाग करना ।
सहायता विनय क्या है ? सहायता विनय चार प्रकार से बताया है-गुरु की आज्ञा को आदर के साथ स्वीकार करना, गुरु की आज्ञा के मुताबिक शरीर की क्रिया करना, गुरु के शरीर की यथा उचित सेवा करना, सर्व कार्य में कुटिलता रहित व्यवहार करना ।
वर्ण संज्वलना विनय क्या है ? वर्ण संजवलनता विनय चार प्रकार से बताया हैवीतराग वचन तत्पर गणी और गण के गुण की प्रशंसा करना, गणी-गणके निंदक को निरुत्तर करना, गणी गण के गुणगान करनेवाले को प्रोत्साहित करना, खुद बुर्जुग की सेवा करना, यह है वर्ण संज्वलनता विनय ।
भार प्रत्यारोहणता विनय कया है ? भार प्रत्यारोहणता विनय चार प्रकार से है