SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद अनुसरण करता हुआ, राजा भरत निबिड अन्धकार को चीर कर आगे बढ़ते हुए चन्द्रमा की ज्यों खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार से निकला । [१०५] तत्पश्चात् - गुफा से निकलने के बाद राजा भरत ने गंगा महानदी के पश्चिमी तट पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा, श्रेष्ठ - नगर - सदृश - सैन्यशिबिर स्थापित किया । शेष कथन मागध देव समान है । फिर राजा ने नौ निधिरत्नों को - उद्दिष्ट कर तेला किया । राजा भरत नौ निधियों का मन में चिन्तन करता हुआ पौषधशाला में अवस्थित रहा । नौ निधियां अपने अधिष्ठातृ देवों के साथ वहाँ राजा भरत के समक्ष उपस्थित हुईं । वे निधियाँ अपरिमित - लाल, नीले, पीले, हरे, सफेद आदि अनेक वर्णों के रत्नों से युक्त थीं, ध्रुव, अक्षय तथा अव्यय-थीं, लोकविश्रुत थीं । वे इस प्रकार है [१०६] नैसर्प, पाण्डुक, पिंगलक, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक तथा शंखन । [१०७] नैसर्प निधि - ग्राम, आकर, नगर, पट्टन, द्रोणमुख, मडम्ब, स्कन्धावार, आपण तथा भवन- इनके स्थापन की विशेषता होती है । [१०८] पाण्डुक निधि-गिने जाने योग्य, मापे जानेवाले धान्य आदि, तोले जानेवाले चीनी, गुड़ आदि, कमल जाति के उत्तम चावल आदि धान्यों के बीजों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है । [१०९] पिंगलक निधि-पुरुषों, नारियों, घोड़ों तथा हाथियों के आभूषणों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है । [११०] सर्वरत्न निधि - चक्रवर्ती के चौदह उत्तम रत्नों को उत्पन्न करती है । उनमें चक्ररत्न आदि सात एकेन्द्रिय होते हैं । सेनापतिरत्न आदि सात पंचेन्द्रिय होते हैं । [999] महापद्म निधि - सब प्रकार के वस्त्रों को उत्पन्न करती है । वस्त्रों के रंगने, धोने आदि समग्र सज्जा के निष्पादन में समर्थ होती है । [११२] काल निधि - समस्त ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान, तीर्थंकर, चक्रवर्ति तथा बलदेववासुदेव - वंश - में जो शुभ, अशुभ घटित हुआ, होगा, हो रहा है, उन सबके ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्पों के ज्ञान, उत्तम, मध्यम तथा अधम कर्मों के ज्ञान को उत्पन्न करने में समर्थ होती है । [११३] महाकाल निधि - विविध प्रकार के लोह, रजत, स्वर्ण, मणि, मोती, स्फटिक तथा प्रवाल आदि के आकारों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है । [११४] माणवक निधि-योद्धाओं, आवरणों, प्रहरणों, सब प्रकार की युद्ध-नीति के तथा साम, दाम, दण्ड एवं भेदमूलक राजनीति के उद्भव की विशेषता युक्त होती है । [११५] शंख निधि - नृत्य - विधि, नाटक-विधि - धर्म, अर्थ, काकम और मोक्ष-के प्रतिपादक काव्यों की अथवा गद्य, पद्य, गेय, चौर्ण - काव्यों की उत्पत्ति एवं सब प्रकार को वाद्यों को उत्पन्न करने की विशेषतायुक्त होती है । [११६] उनमें से प्रत्येक निधि का अवस्थान आठ-आठ चक्रों के ऊपर होता हैजहाँ-जहाँ ये ले जाई जाती हैं, वहाँ-वहाँ ये आठ चक्रों पर प्रतिष्ठित होकर जाती हैं । उनकी ऊँचाई आठ-आठ योजन की चौड़ाई नौ-नौ योजन की तथा लम्बाई बारह - बारह योजन की "
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy