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________________ १५० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद थी । कोष्ठक चैत्य था । अंगति गाथापति-था, जो धनाढ्य यावत् लोगों द्वारा अपरिभूत थावह अंगजित गाथापति श्रावस्ती नगरी के बहुत से नगरनिवासी व्यापारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपालक, आदि के अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, निर्णयों में, सामाजिक व्यवहारों पूछने योग्य एवं विचार करने योग्य था एवं अपने कुटुम्ब परिवार का मेढि-प्रमाण, आधार, आलंबन, चक्षु, मेढिभूत यावत् तथा सब कार्यों में अग्रेसर था । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के समान धर्म की आदि करनेवाले इत्यादि, नौ हाथ की अवगाहना वाले पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु १६००० श्रमणों एवं ३८००० आर्याओं के समुदाय के साथ गमन करते हुए यावत् कोष्ठक चैत्य में पधारे । परिषद् दर्शनार्थ निकली । __तब वह अंगजित गाथापति इस संवाद को सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट होता हुआ कार्तिक श्रेष्ठी के समान निकला यावत् पर्युपासना की । धर्म को श्रवण कर और अवधारित कर उसने प्रभु से निवेदन किया-देवानुप्रिय ! ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करूँगा । तत्पश्चात् मैं यावत् प्रव्रजित होऊँगा । गंगदत्त के समान वह प्रव्रजित हुआ यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया । अंगजित अनगार ने अर्हत् पार्श्व के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ले लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । चतुर्थभक्त यावत् आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करके अर्धमासिक संलेखना पूर्वक अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन कर-मरण करके संयमविराधना के कारण चन्द्रावतंसक विमान की उपपात-शैया में ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ । तब सद्यःउत्पन्न ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त हुआ–आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति । भदन्त ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की कितने काल की आयु है ? गौतम ! एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । आयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार से यावत् मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है, ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-२-सूर्य [४] भदन्त ! यदि श्रमण भगवान् महावीरने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । श्रमण भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । जैसे भगवान् की उपासना के लिये चन्द्र आया था उसी प्रकार सूर्य इन्द्र का भी आगमन हुआ यावत् नृत्य-विधियाँ प्रदर्शित कर वापिस लौट गया । गौतम स्वामी ने सूर्य के पूर्वभव के विषय में पूछा । श्रावस्ती नाम की नगरी थी । वहाँ धन-वैभव आदि से संपन्न सुप्रतिष्ठ नामक गाथापति रहता था । वह भी अंगजित के समान यावत् धनाढ्य एवं प्रभावशाली था । वहाँ पार्श्व प्रभु पधारे । अंगजित के समान वह भी प्रव्रजित हुआ और उसी
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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