SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुष्पिका-१/१ १४९ नमो नमो निम्मलदसणस्स |२१| पुष्पिका उपांगसूत्र-१०-हिन्दी अनुवाद (अध्ययन-१-चन्द्र) [१] भदन्त ! यदि श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने द्वितीय उपांग कल्पवतंसिका का यह भाव प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! उपांगों के तृतीय वर्ग रूप पुष्पिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! तृतीय उपांग वर्ग रूप पुष्पिका के दस अध्ययन कहे हैं । [२] चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका, पूर्णभद्र, मानभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृत। [३] हे भदन्त ! श्रमण भगवान् ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय कहा है ? आयुष्यमन् जम्बू ! उस काल और समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा राज्य करता था । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे । दर्शनार्थ परिषद निकली । उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर बैठकर ४००० सामानिक देवों यावत् सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिपदाओं, सात प्रकार की सेनाओं, सात उनके सेनापतियों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य दूसरे भी बहुत से उस विमानवासी देवदेवियों सहित निरंतर महान् गंभीर ध्वनिपूर्वक निपुण पुरुषों द्वारा वादित वीणा, हस्तताल, कांस्यताल, त्रुटित, घन मृदंग आदि वाद्यों एवं नाट्यों के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगता हुआ विचर रहा था । उसने अपने विपुल अवधि ज्ञान से अवलोकन करते हुए इस केवलकल्प जम्बूद्वीप को और श्रमण भगवान् महावीर को देखा । तब भगवान् के दर्शनार्थ जाने का विचार करके सूर्याभदेव के समान अपने आभियोगिक देवों को बुलाया यावत् उन्हें देव-देवेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करने की आज्ञा दी फिर अपने पदाति सेनानायक को आज्ञा दी सुस्वरा घंटा बजाकर सब देव-देवियों को भगवान् के दर्शनार्थ चलने के लिए सूचित करो। यावत् सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि आदि प्रदर्शित करने की विकुर्वणा की । इतना अंतर है कि उसका यान-विमान १००० योजन विस्तीर्ण और ६२।। योजन ऊँचा था । माहेन्द्रध्वज की ऊँचाई २५ योजन की थी । भगवन् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन-नमस्कार करके निवेदन किया-भंते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चंद्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति, दिव्य दैविक प्रभाव कहाँ चले गये ? कहाँ समा गये ? गौतम ! चन्द्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य ऋद्धि आदि उसके शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई- पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न श्रमण भगवान् महावीर ने कहा-गौतम ! उस काल और उस समय में श्रावस्ती नगरी
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy