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________________ ११६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद में, या प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन आदि क्रिया प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में ही की जाती है । सूर्य अपने तेज द्वारा क्षेत्र-स्पर्शन पूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं । वह अवभासन आदि क्रिया साठ मुहूर्तप्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में, मध्य में और अन्त में की जाती है । [२६६] भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र को ऊर्ध्वभाग में, अधोभाग में तथा तिर्यक् भाग में तपाते हैं ? गौतम ! ऊर्श्वभाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र को तथा तिर्यक् भाग में ४७२६३-२१/६० योजन क्षेत्र को अपने तेज से तपाते हैं। [२६७] भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे-ऊोपपन्न हैं ? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं-या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं । ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकार में संस्थित सहस्रों योजनपर्यन्त, चन्द्रसूर्यापेक्षया तापक्षेत्र युक्त, वैक्रियलब्धियुक्त, आभियोगिक कर्म करने में तत्पर, सहस्रों बाह्य परिषदों से संपरिवृत वे ज्योतिष्क देव नाट्य-गीत-वादन रूप त्रिविध संगीतोपक्रम में जोर-जोर से बजाये जाते वाद्यों से उत्पन्न मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोग भोगते हुए, उच्च स्वर से सिंहनाद करते हुए, मुँह पर हाथ लगाकर जोर से पूत्कार करते हुए कलकल शब्द करते हुए अच्छ-निर्मल, उज्ज्वल मेरु पर्वत की प्रदक्षिणावर्त मण्डल गति द्वारा प्रदक्षिणा करते रहते हैं । [२६८] भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! चार या पांच सामानिक देव मिल कर इन्द्रस्थान का संचालन करते हैं । इन्द्र का स्थान कम से कम एक समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है । मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती ज्योतिष्क देवों का वर्णन पूर्वानुरूप जानना । इतना अन्तर है-वे विमानोत्पन्न हैं । पकी ईंट के आकार में संस्थित, चन्द्रसूयपिक्षया लाखों योजन विस्तीर्ण तापक्षेत्रयुक्त, नानाविध विकुर्वित रूप धराण करने में सक्षम, लाखों बाह्य परिषदों से संपरिवृत ज्योतिष्क देव वाद्यों से उत्पन्न मधुर ध्वनि के आनन्द के साथ दिव्य भोग भोगने में अनुरत, सुखलेश्यायुक्त, मन्दलेश्यायुक्त, विविधलेश्यायुक्त, परस्पर अपनी-अपनी लेश्याओं द्वारा अवगाढ-अपने स्थान में स्थित, सब ओर के अपने प्रत्यासन्न, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं । शेष कथन पूर्ववत् है । [२६९] भगवन् ! चन्द्र-मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १५ हैं । जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर पांच चन्द्र-मण्डल है । लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र-मण्डल हैं । यों कुल १५ चन्द्र-मण्डल होते हैं ।। [२७०] भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल से सर्वबाह्य चन्द्र-मण्डल अबाधित रूप में कितनी दूरी पर है । गौतम ! ५१० योजन की दूरी पर है । [२७१] भगवन् ! एक चन्द्र-मण्डल का दूसरे चन्द्र-मण्डल से कितना अन्तर है ? गौतम ! ३५-३०/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के सात भागों में चार भाग योजनांश परिमित अन्तर है । [२७२] भगवन् ! चन्द्र-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई, परिधि तथा ऊँचाई कितनी है ?
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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