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________________ प्रज्ञापना-२१/-/५१२ कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवा भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन। वनस्पतिकायिक अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की है और पर्याप्तकों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन है । बादर० की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन है । पर्याप्तकों की भी इसी प्रकार है । अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । और सूक्ष्म, पर्याप्तक और अपर्याप्तक, इन तीनों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवा भाग है । द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन । इसी प्रकार सर्वत्र अपर्याप्त जीवों की औदारिकशरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की जानना । पर्याप्त द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उनके औधिक समान है । इसी प्रकार त्रीन्द्रियों की तीन गव्यूति तथा चतुरिन्द्रियों की चार गव्यूति है । पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के औधिक, उनके पर्याप्तकों तथा अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है तथा सम्मूर्छिम० औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना इसी प्रकार है । इस प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के० कुल ९ भेद होते हैं । इसी प्रकार औधिक और पर्याप्तक जलचरों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है । स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों की औदारिकशरीरावगाहना-सम्बन्धी पूर्ववत् ९ विकल्प होते हैं । स्थलचर उत्कृष्टतः छह गव्यूति है। सम्मूर्छिम स्थलचर-पं० उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व है । उनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । गर्भज-तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्ट छह गव्यूति की और पर्याप्तकों की भी इतनी ही है । औधिक चतुष्पदों, गर्भज-चतुष्पदों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टतः छह गव्यूति की होती है । सम्मूर्छिमचतुष्पद० उनके पर्याप्तकों की उत्कृष्ट रूप से गव्यूतिपृथक्त्व है । इसी प्रकार उरःपरिसर्प० औधिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों की एक हजार योजन है । सम्मूर्छिम० उनके पर्याप्तकों की योजनपृथक्त्व है । भुजपरिसर्प० औधिक, गर्भज की उत्कृष्टतः गव्यूति-पृथक्त्व है । सम्मूर्छिम० की धनुषपृथक्त्व है । खेचर० औधिकों, गर्भजों एवं सम्मूर्छिमों, इन तीनों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व है ।। [५१३] गर्भज जलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचरों की छह गव्यूति, उरःपरिसर्प-स्थलचरों की एकहजार योजन, भुजपरिसर्प० की गव्यूतिपृथक्त्व और खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की औदारिकशरीरावगाहना होती है । [५१४] सम्मूर्छिम स्थलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पद-स्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व, उरःपरिसरों की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसॉं तथा सम्मूर्छिम खेचर की धनुषपृथक्त्व, उत्कृष्ट औदारिकशरीरावगाहना है । [५१५] मनुष्यों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट तीन गव्यूति । उनके अपर्याप्तक की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की तथा सम्मूर्छिम की जघन्यतः और उत्कृष्टतः अंगुल के असंख्यातवें
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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