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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वाला। एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान का है ? गौतम ! नाना संस्थान वाला । पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर मसूर-चन्द्र जैसे संस्थान वाला है । इसी प्रकार सूक्ष्म और बादर पृथ्वीकायिकों का भी समझना | पर्याप्तक और अपर्याप्तक भी इसी प्रकार जानना । अप्कायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर का संस्थान स्तिबुकबिन्दु जैसा है | इसी प्रकार का अप्कायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों को समझना । तेजस्कायिक-एकेन्द्रियऔदारिकशरीर का संस्थान सूइयों के ढेर जैसा है । इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्तों के शरीरों को समझना । वायुकायिक का संस्थान पताका समान है । इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों को भी समझना । वनस्पतिकायिकों के शरीर का संस्थान नाना प्रकार का है । इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक, अपर्याप्तको का जानना।
द्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! हंडकसंस्थान वाला। इसी प्रकार पर्याप्तक और अपर्याप्तक भी समझना । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को भी समझना । तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला है ? गौतम ! छहों प्रकार का, समचतुरस्र संस्थान से हुंडकसंस्थान पर्यन्त । इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक में भी समझ लेना । सम्मूर्च्छिम-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थानवाला है ? गौतम ! हंडक संस्थानवाला । इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक को भी समझना । गर्भजतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थानवाला है ? गौतम ! छहों प्रकार का । समचतुरस्रसंस्थान से हुंडकसंस्थान तक । इस प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक भी समझना । इस प्रकार औधिक तिर्यञ्चयोनिकों के ये नौ आलापक है ।
जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला है ? गौतम ! छहों प्रकार का । समचतुरस्त्र यावत् हुण्डक संस्थान । इसी प्रकार पर्याप्त, अपर्याप्तक भी जानना। सम्मूर्छिम-जलचरों के औदारिकशरीर हुण्डकसंस्थान वाले हैं । उनके पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के भी इसी प्रकार हैं । गर्भज-जलचर छहों प्रकार के संस्थान वाले हैं । इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक भी जानना । इसी प्रकार स्थलचर० के नौ सूत्र होते है । इसी प्रकार चतुष्पदस्थलचरों, उरःपरिसर्प-स्थलचरों एवं भुजपरिसर्प-स्थलचरों के औदारिकशरीर संस्थानों के भी नव सूत्र होते है । इसी प्रकार खेचरों के भी नौ सूत्र है । विशेष यह कि सम्मूर्छिम० सर्वत्र हुण्डकसंस्थान वाले कहना । गर्भज० के छहों संस्थान होते है । मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला है ? गौतम ! छहों प्रकार का । समचतुरस्त्र यावत् हुण्डकसंस्थान । पर्याप्तक और अपर्याप्तक भी इसी प्रकार हैं । गर्भज० भी इसी प्रकार हैं । पर्याप्तक अपर्याप्तक को भी ऐसे ही जानना । सम्मूर्छिम मनुष्यों हुण्डकसंस्थान वाले हैं ।
५१२] भगवन् ! औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टः कुछ अधिक हजार योजन | एकेन्द्रिय के औदारिकशरीर की अवगाहना औधिक के समान है । पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवा भाग । इसी प्रकार अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक भी जानना । इसी प्रकार सूक्ष्म और बादर पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक भी समझना, ये नौ भेद हुए । पृथ्वीकायिकों के समान अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक के भी नौ भेद जानना । वनस्पतिकायिकों के औदारिकशरीर की अवगाहना