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________________ प्रज्ञापना-१७/४/४६८ | 99 अपेक्षा से उत्कृष्ट शुक्ललेश्यास्थानों से जघन्य कापोतलेश्यास्थान प्रदेशों से अनन्तगुणे हैं, उनसे जघन्य नीललेश्या प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्ण, तेजो यावत् शुक्ललेश्या के जघन्यस्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं । प्रदेश की अपेक्षा से जघन्य शुक्ललेश्यास्थानों से, उत्कृष्ट कापोतलेश्यास्थान प्रदेशों से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार नील, कृष्ण, तेजो यावत् शुक्ललेश्या के उत्कृष्टस्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं । | पद-१७ उद्देशक-५ । [४६९] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी हैं ? गौतम ! छह, कृष्ण यावत् शुक्ल । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर उसी के स्वरूप में, उसी के वर्ण, गन्ध, रस और प्पश के रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती है ? यहाँ से प्रारम्भ करके यावत् वैडूर्यमणि के दृष्टान्त तक चतुर्थ उद्देशक समान कहना । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त हाकर नीललेश्या के स्वभावरूप में यावत् स्पर्शरूप में बार-बार परिणत नहीं होती है ? हाँ, गौतम ! नहीं होती । क्योंकी-वह आकार भावमात्र से हो, अथवा प्रतिभाग भावमात्र से (नीललेश्या) होती है । (वास्तव में) यह कृष्णलेश्या ही है । वह (कृष्णलेश्या) वहाँ रही हुई उत्कर्ष को प्राप्त होती है, इसी हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् बारबार परिणत नहीं होती है । भगवन् ! क्या नीललेश्या, कापोतलेश्या को प्राप्त होकर उसके स्वरूप में यावत् बारबार परिणत नहीं होती ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । कारण पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार कापोतलेश्या, तेजोलेश्या और पद्मलेश्या के सम्बन्धमें ऐसे ही प्रश्नोत्तर समझ लेना । भगवन् ! क्या शुक्ललेश्या, पद्मलेश्या को प्राप्त होकर उसके स्वरूप में यावत् परिणत नहीं होती ? हाँ गौतम ! परिणत नहीं होती, इत्यादि पूर्ववत् कहना । कारण भी वहीं समझ लेना। | पद-१७ उद्देशक-६ । [४७०] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी हैं ? गौतम ! छह, कृष्ण यावत् शुक्ल । भगवन् ! मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? गौतम ! छह, कृष्ण यावत् शुक्ल । इसी प्रकार मनुष्य स्त्री, कर्मभूमिज, भरत ऐरावत, पूर्व-पश्चिम विदेह में मनुष्य और मानुषीस्त्री में भी छह लेश्या जानना । भगवन् ! अकर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! चार, कृष्ण यावत् तेजो । इसी प्रकार अकर्मभूमिजस्त्री; हैंमवत-ऐरण्यवत् - हरिवास-रस्यक-देवकुरु-उत्तरकुरुघातकीखण्ड पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध-पुष्करवरार्द्ध द्वीप के पूर्वार्ध-पश्चिमाई के मनुष्यों एवं मनुष्यस्त्री की चार लेश्याए जानना । भगवन् ! कृष्णलेश्यी मनुष्य कृष्णलेश्यी गर्भ को उत्पन्न करता है ? हाँ, गौतम ! करता है । इसी प्रकार (कृष्णलेश्यी पुरुष से) नील यावत् शुक्ललेश्या वाले गर्भ की उत्पत्ति कहना । कृष्णलेश्यी पुरुष समान नील यावत् शुक्ललेश्या वाले प्रत्येक मनुष्य से इस प्रकार छह-छह आलापक होने से सब छत्तीस आलापक हुए । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी स्त्री कृष्णलेश्यी गर्भ को उत्पन्न करती है ? हाँ, गौतम ! करती है । पूर्ववत् छत्तीस आलापक कहना । भगवन् ! कृष्णलेश्यी मनुष्य क्या कृष्णलेश्यी स्त्री से कृष्णलेश्यी गर्भ को उत्पन्न करता है ? हाँ, गौतम ! करता है । पूर्ववत् छत्तीस आलापक । भगवन् ! कर्मभूमिज कृष्णलेश्यी मनुष्य कृष्णलेश्यी स्त्री से कृष्णलेश्यी गर्भ को उत्पन्न करता है ? हाँ, गौतम !
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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