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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जिह्वेन्द्रिय है, ( उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यात गुणी है । अवगाहना और प्रदेशों से- द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय अवगाहना से सबसे कम है, ( उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यातगुणी अधिक है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों से अनन्तगुणी है । ( उससे ) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है । भगवन् ! द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय के कितने कर्कश - -गुरुगुण हैं ? गौतम ! अनन्त । इसी प्रकार इनकी स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण और मृदु-लघुगुण भी समझना । भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश - गुरुगुणों तथा मृदु-लघुगुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रियों के जिह्वेन्द्रिय के कर्कश - गुरुगुण हैं, ( उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश - गुरुगुण अनन्तगुणे हैं । (इन्द्रिय) के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं (और उससे) जिह्वेन्द्रिय के मृदुघुगुण अनन्त हैं ।
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इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय में कहना । विशेष यह है कि इन्द्रिय की परिवृद्धि करना । त्रीन्द्रिय जीवों की घ्राणेन्द्रिय थोड़ी होती है, चतुरिन्द्रिय जीवों की चक्षुरिन्द्रिय थोड़ी होती है । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के इन्द्रियों के संस्थानादि नारकों की इन्द्रिय संस्थानादि के समान समझना । विशेषता यह कि उनकी स्पर्शेनेन्द्रिय छह प्रकार के संस्थानों वाली है । समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि, कुब्जक, वामन और हुण्डक । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को असुरकुमारों के समान कहना ।
[४२४] भगवन् (श्रोत्रेन्द्रिय) स्पृष्ट शब्दों को सुनती है या अस्पृष्ट शब्दों को ? गौतम ! स्पृष्ट शब्दों को सुनती है, अस्पृष्ट को नहीं । (चक्षुरिन्द्रिय) अस्पृष्ट रूपों को देखती है, स्पृष्ट रूपों को नहीं देखती । ( घ्राणेन्द्रिय) स्पृष्ट गन्धों को सूंघती है, अस्पृष्ट गन्धों को नहीं । इस प्रकार रसों के और स्पर्शो के विषय में भी समझना । विशेष यह कि ( जिह्वेन्द्रिय) रसों का आस्वादन करती है और (स्पर्शनेन्द्रिय) स्पर्शो का प्रतिसंवेदन करती है।
भगवन् ! (श्रोत्रेन्द्रिय) प्रविष्ट शब्दों को सुनती है या अप्रविष्ट शब्दों को ? गौतम ! प्रविष्ट शब्दों को सुनती है, अप्रविष्ट को नहीं । इसी प्रकार स्पृष्ट के समान प्रविष्ट के विषय में भी कहना ।
[४२५] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषय कितना है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग एवं उत्कृष्ट बारह योजनों से आये अविच्छिन्न शब्दवर्गणा के पुद्गल के स्पृष्ट होने पर प्रविष्ट शब्दों को सुनती है । भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय का विषय कितना है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन से कुछ अधिक (दूर) के अविच्छिन्न पुद्गलों के अस्पृष्ट एवं अप्रविष्ट रूपों को देखती है । घ्राणेन्द्रिय का विषय जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट नौ योजनों से आए अविच्छिन्न पुद्गल के स्पृष्ट होने पर प्रविष्ट गन्धों को सूंघ लेती है । घ्राणेन्द्रिय के समान जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शनेन्द्रिय के विषयपरिमाण के सम्बन्ध में भी जानना ।
[४२६] भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा - पुद्गल हैं, क्या वे पुद्गल सूक्ष्म हैं ? क्या वे सर्वलोक को अवगाहन करके रहते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा - पुद्गलों के अन्यत्व, नानात्व, हीनत्व, तुच्छत्व, गुरुत्व या लघुत्व को जानता देखता है ? गौतम ! यह अर्थ शक्य