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________________ प्रज्ञापना-१४/-/४१३ ४७ (पद-१४-'कषाय') [४१३] भगवन् ! कषाय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के, क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय । भगवन् ! नैरयिक जीवों में कितने कषाय होते हैं ? गौतम ! चार-क्रोधकषाय यावत् लोभकषाय । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना । [४१४] भगवन् ! क्रोध कितनों पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! चार स्थानो परआत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित, उभय-प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । क्रोध की तरह मान, माया और लोभ में भी एक-एक दण्डक कहना। भगवन् ! कितने स्थानों से क्रोध की उत्पत्ति होती है ? गौतम ! चार-क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार मान, माया और लोभ में भी कहना । इसी प्रकार ये चार दण्डक होते हैं । [४१५] भगवन् ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का अनन्तानुबन्धी क्रोध, अप्रत्याख्यान क्रोध, प्रत्याख्यानवरण क्रोध और संज्वलन क्रोध । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार मान से, माया से और लोभ की अपेक्षा से भी चार दण्डक होते हैं । [४१६] भगवन् ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का आभोगनिवर्तित, अनाभोगनिवर्तित, उपशान्त और अनुपशान्त । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । क्रोध के समान ही मान, माया और लोभ के विषय में जानना । [४१७] भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय किया ? गौतम ! चार कारणों से क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना | भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे ? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा के विषय में तीनो प्रश्न समझना । [४१८] आत्मप्रतिष्ठित, क्षेत्र की अपेक्षा से, अनन्तानुबन्धी, आभोग, अष्ट कर्मप्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा यह पद सहित सूत्र कथन हुआ । पद-१४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (पद-१५-'इन्द्रिय' ) उद्देशक-१ [४१९] संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, कति-प्रदेश, अवगाढ, अल्पबहुत्व, स्पृष्ट, प्रविष्ट, विषय, अनगार, आहार । तथा [४२०] आदर्श, असि, मणि, उदपान, तैल, फाणित, वसा, कम्बल, स्थूणा, थिग्गल, द्वीप, उदधि, लोक और अलोक ये चौबीस द्वार इस उद्देशक में है । [४२१] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! पांच-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय,
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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