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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होते हैं और श्रुतज्ञानी भी; अज्ञानपरिणाम से मतिअज्ञानी भी होते हैं और श्रुत-अज्ञानी भी; दर्शनपरिणाम से वे सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी; इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियजीवों तक समझना । विशेष यह कि इन्द्रिय की वृद्धि कर लेना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगतिक हैं । शेष नैरयिकों के समान है । विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से यावत् शुक्ललेश्यावाले भी होते हैं; चारित्रपरिणाम से वे अचास्त्रिी और चारित्राचारित्री भी है; वेद परिणाम से वे स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक और नपुंसकवेदक भी होते हैं ।
मनुष्य, गतिपरिणाम से मनुष्यगतिक हैं; इन्द्रियपरिणाम से पंचेन्द्रिय होते हैं, अनिन्द्रिय भी; कषायपरिणाम से क्रोधकषायी, यावत् अकषायी भी होते हैं; लेश्यापरिणाम से कृष्णलेश्या यावत् अलेश्यी भी हैं; योगपरिणाम से मनोयोगी यावत् अयोगी भी हैं; उपयोगपरिणाम से
नैरयिकों के समान हैं; ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिकज्ञानी से यावत् केवलज्ञानी तक भी होते हैं; अज्ञानपरिणाम से तीनों ही अज्ञानवाले हैं; दर्शनपरिणाम से तीनों ही दर्शन हैं; चारित्रपरिणाम से चारित्री, अचारित्री और चारित्राचारित्री भी होते हैं; वेदपरिणाम से (ये) स्त्रीवेदक यावत् अवेदक भी होते हैं | वाणव्यन्तर देव गतिपरिणाम से देवगतिक हैं, शेष असुरकुमारों की तरह समझना । इसी प्रकार ज्योतिष्कों के समस्त परिणामों में भी समझना । विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से (वे सिर्फ) तेजोलेश्या वाले होते हैं । वैमानिकों को भी इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि वे तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या वाले भी होते हैं ।
[४०८] भगवन् ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दस प्रकार काबन्धनपरिणाम, गतिपरिणाम, संस्थानपरिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुपरिणाम और शब्दपरिणाम ।
[४०९] भगवन् ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, स्निग्धबन्धनपरिणाम, रूक्षबन्धनपरिणाम ।
[४१०] समस्निग्धता और समरूक्षता होने से बन्ध नहीं होता । विमात्रा वाले स्निग्धत्व और रूक्षत्व के होने पर स्कन्धों का बन्ध होता है ।
[४११] दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध का तथा दो गुण अधिक रूक्ष के साथ रूक्ष का एवं स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्ध होता है; किन्तु जघन्यगुण को छोड़ कर, चाहे वह सम हो अथवा विषम हो ।
[४१२] भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का, स्पृशद्गतिपरिणाम और अस्पृशद्गतिपरिणाम, अथवा दीर्घगतिपरिणाम और ह्रस्वगतिपरिणाम । संस्थानपरिणाम पांच प्रकार का है-परिमण्डलसंस्थानपरिणाम, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम | भेदपरिणाम पांच प्रकार का है-खण्डभेदपरिणाम, यावत् उत्कटिका भेदपरिणाम । वर्णपरिणाम पांच प्रकार का है-कृष्णवर्णपरिणाम, यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम । गन्धपरिणाम दो प्रकार का है-सुगन्धपरिणाम
और दुर्गन्धपरिणाम । रसपरिणाम पांच प्रकार का है-तिक्तरसपरिणाम, यावत् मधुरस्सपरिणाम । स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का है-कर्कश स्पर्शपरिणाम, यावत् रूक्षस्पर्शपरिणाम । अगुरुलघुपरिणाम एक ही प्रकार का है । शब्दपरिणाम दो प्रकार का है-सुरभि शब्दपरिणाम और दुरभि शब्दपरिणाम।
पद-१३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण