________________
प्रज्ञापना-६/-/३५१
तीसरा भाग शेष रहने पर, कदाचित् आयु के तीसरे का तीसरा भाग शेष रहने पर और कदाचित् आयु के तीसरे के तीसरे का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं । अप्कायिक यावत् वनस्पतिकायिकों तथा विकलेन्द्रियों को इसी प्रकार कहना ।
भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव की आयु बांधता है ? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दो प्रकार के हैं । संख्यातवर्षायुष्क और असंख्यातवायुष्क । जो असंख्यात वर्ष आयुवाले हैं, वे नियम से छह मास आयु शेष रहते पर भव का आयु बांध ते है और संख्यातवर्ष आयुवाले हैं, वे दो प्रकार के हैं । सोपक्रम और निरुपक्रम आयुवाले । निरुपक्रम आयुवाले हैं, नियमतः आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं । सोपक्रम आयुवाले का कथन सोपक्रम पृथ्वीकायिक समान जानना । मनुष्यों को इसी प्रकार कहना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों को नैरयिकों के समान कहना ।
[३५२] भगवन् ! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का। जातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु । भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ? पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझ लेना ।
भगवन् ! जीव जातिनामनिधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से । इसी प्रकार वैमानिक तक समझ लेना। इसी प्रकार गतिनामनिधत्तायु यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को जानना ।
भगवन् ! इन जीवों में यावत् आठ आकर्षों से बन्ध करनेवालों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम जीव जातिनामनिधत्तायु को आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं, सात आकर्षों से बांधने वाले (इनसे) संख्यातगुणे हैं, यावत् इसी अनुक्रम से एक आकर्प से बांधने वाले, (इनसे भी) संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार गतिनामनिधत्तायु यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को (जानना ।) इसी प्रकार ये छहों ही अल्पबहुत्वसम्बन्धी दण्डक जीव से आरम्भ करके कहना । पद-६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-७ “उच्छ्वास") [३५३] भगवन् ! नैरयिक कितने काल से उच्छ्वास लेते और निःश्वास छोड़ते हैं । गौतम ! सतत सदैव उच्छ्वास-निःश्वास लेते रहते हैं । भगवन् ! असुरकुमार ? गौतम ! वे जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः सातिरेक एक पक्ष में श्वास लेते और छोडते हैं । भगवन् ! नागकुमार ? गौतम ! वे जघन्य सात स्तोक और उत्कृष्टतः मुहूर्तपृथक्त्व में श्वास लेते और छोडते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक समझना ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल से श्वासोच्छ्वास लेते हैं ? गौतम ! विमात्रा से । इसी प्रकार मनुष्यों तक जानना | वाणव्यन्तर देवों में नागकुमारों के समान कहना । भगवन् ! ज्योतिष्क ? गौतम ! (वे) जघन्यः और उत्कृष्ट भी मुहूर्तपृथक्त्व से उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं ।