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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद असुरकुमारों की तरह स्तनितकुमारों तक की उद्वर्तना समझ लेना ।
[३४७] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव अनन्तर उद्धर्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्धर्तना भी कहना चाहिए । इसी प्रकार अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय
और चतुरिन्द्रियों (की भी उद्धर्तना कहना ।) इसी प्रकार तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी कहना । विशेष यह कि मनुष्य में निषेध करना ।
[३४८] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यज्योनिक अनन्तर उद्धर्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभा यावत् अधः-सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्धर्तना भी कहना । विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षों की आयुवालों में भी उत्पन्न होते हैं । .
(भगवन् !) यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज में ? गौतम ! दोनों में । इनके उपपात के समान उद्वर्तना भी कहना। विशेष यह कि अकर्मभूमिज, अन्तीपज और असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी (भवनपतियों) में उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और सहस्रारकल्प तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं ।
[३४९] भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्धर्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ? हा । गौतम ! होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना, यावत् कई मनुष्य सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण पाते हैं और सर्वदुःखों का अन्त भी करते हैं ।
[३५०] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म एवं ईशान देवलोक के वैमानिक देवों की उद्धर्तन-प्ररूपणा असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए 'च्यवन करते हैं' कहना । भगवन् ! सनत्कुमार देव अनन्तर च्यवन करके, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार सहस्रार देवों तक कहना । आनत देवों से अनुत्तरौपपातिक देवों तक इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न नहीं होते, मनुष्यों में भी पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
[३५१] भगवन् ! आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव का आयु बांधता है ? गौतम ! नियम से छह मास आयु शेष रहने पर । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं, सोपक्रम आयुवाले
और निरुपक्रम आयुवाले । जो निरुपक्रम आयुवाले हैं, वे नियम से आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं तथा सोपक्रम आयुवाले कदाचित् आयु का