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सूर्यप्रज्ञप्ति - १८/-/१२३
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ग्रह विमान को ८००० देव वहन करते है - पूर्व से उत्तर तक दो-दो हजार, पूर्ववत् रूपसे; नक्षत्र विमान को ४००० देव वहन करते है - पूर्व से उत्तर तक एक-एक हजार, पूर्ववत् रुप से । [१२४] ज्योतिषक देवो की गति का अल्पवहुत्व - चंद्र से सूर्य शीघ्रति होता है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होत है सर्व मंदगति चंद्र है और सर्व शीघ्रगति तारा है । तारारूप से नक्षत्र महर्द्धिक होते है; नक्षत्र से ग्रह, ग्रह से सूर्य और सूर्य से चंद्र महर्द्धिक है । सर्व अल्पर्द्धिक तारा है और सबसे महर्द्धिक चंद्र होते है ।
[१२५] इस जंबूद्वीप में तारा से तारा का अन्तर दो प्रकार का है- व्याघात युक्त अन्तर जघन्य से २६६ योजन और उत्कृष्ट से १२२४२ योजन है; निर्व्याघात से यह अन्तर जघन्य से ५०० धनुष और उत्कृष्ट से अर्धयोजन है ।
[१२६] ज्योतिष्केन्द्र चंद्र की चार अग्रमहिषीयां है--चंद्रप्रभा, ज्योत्सनाभा, अर्चिमालिनी एवं प्रभंकरा; एक एक पट्टराणी का चार-चार हजार देवी का परिवार है, वह एक-एक देवी अपने अपने चार हजार रूपो की विकुर्वणा करती है इस तरह १६००० देवियों की एक त्रुटीक होती है । वह चंद्र चंद्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में उन देवीयों के साथ भोग भोगते हुए विचरण नहीं कर शकता, क्योंकी सुधर्मासभा में माणवक चैत्यस्तम्भ में वज्रमय शिके में गोलाकार डब्बे में बहुत से जिनसक्थी होते है, वह ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चंद्र एवं उनके बहुत से देव-देवियांओ के लिए अर्चनीय, पूजनीय, वंदनीय, सत्कारणीय, सम्माननीय, कल्याणमंगल- दैवत - चैत्यभूत और पर्युपासनीय है ।
ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चंद्र चंद्रावतंसक विमान में सुधर्मसभा में ४००० सामानिक देव, सपरिवार चार अग्रमहिषीयां, तीनपर्षदा, सात सेना, सात सेनाधिपति, १६००० आत्मरक्षक देव एवं अन्य भी बहुत से देव-देवीओ के साथ महत् नाट्य गीत - वाजिंत्र-तंत्री- तल-तालतुति धन मृदंग के ध्वनि से युक्त होकर दिव्य भोग भोगते हुए विचरण करता है, मैथुन नहीं करता है । ज्योतिषकेन्द्र ज्योतिष राज सूर्य की चार अग्रमहिषीयां है-सूरप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा, शेष कथन चंद्र के समान है |
[१२७] ज्योतिष्क देवो की स्थिति जघन्य से पल्योपमका आठवां भाग, उत्कृष्ट से एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है । ज्योतिष्क देवी की जघन्य स्थिति वहीं है, उत्कृष्ट ५०००० वर्षसाधिक अर्ध पल्योपम है । चंद्रविमान देव की जघन्य स्थिति एक पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । चंद्रविमान देवी की जघन्य स्थिति औधिक के समान है । सूर्य विमान के देवो की स्थिति चंद्र देवो के समान है, सूर्यविमान के देवी की जघन्य स्थिति औधिक के समान और उत्कृष्ट स्थिति ५०० वर्ष अधिक अर्धपल्योपम है ।
ग्रहविमान के देवो की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट पल्योपम की है; ग्रहविमान के देवी की जघन्य वही है, उत्कृष्ट अर्धपल्योपम की है । नक्षत्र विमान के देवो की स्थिति ग्रहविमान की देवी के समान है और नक्षत्र देवी की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट से पल्योपम का चौथा भाग है । ताराविमान के देवो की स्थिति नक्षत्र देवी के समान है और उनकी देवी की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट से साधिक पल्योपम का आठवां भाग प्रमाण है ।