SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद १५०० योजन उर्ध्वस्थित है । दुसरा कहता है कि सूर्य २००० योजन उर्ध्वस्थित है, चंद्र २५०० योजन उर्ध्वस्थित है । इसी तरह दुसरे मतवादीयों का कथन भी समझ लेना-सभी मत में एक-एक हजार योजन की वृद्धि कर लेना यावत् पच्चीसवां मतवादी कहता है कि-भूमि से सूर्य २५००० योजन उर्ध्वस्थित है और चंद्र २५५०० योजन उर्ध्वस्थित है । भगवंत इस विषय में फरमाते है कि इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम भूमि भाग से उंचे ७९० योजन पर तारा विमान, ८०० योजन पर सूर्यविमान, ८८० योजन उंचे चंद्रविमान, ९०० योजन पर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करते है । सर्वाधस्तन तारा विमान से उपर ११० योजन जाकर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करता है, सूर्य विमान से ८० योजन उंचाइ पर चंद्रविमान भ्रमण करता है, इसका पूर्व-पश्चिम व्यास विस्तार ११० योजन भ्रमण क्षेत्र है, तिर्छ असंख्यात योजन का भ्रमणक्षेत्र है । [११८] हे भगवन् ! चंद्र-सूर्य देवो के अधोभाग या उर्ध्वभाग के तारारुप देव लघु या तुल्य होते है ? वे तारारुप देवो का जिस प्रकार का तप-नियम-ब्रह्मचर्य आदि पूर्वभव में होते है, उस-उस प्रकार से वे ताराविमान के देव लघु अथवा तुल्य होते है । चंद्र-सूर्यदेवो के अधोभाग या उर्ध्वभाग स्थित तारा देवो के विषय में भी इसी प्रकार से लघुत्व या तुल्यत्व समझ लेना । [११९] एक-एक चंद्ररूप देवो का ग्रह-नक्षत्र एवं तारारूप परिवार कितना है ? एकएक चंद्र देव का ग्रह परिवार ८८ का और नक्षत्र परिवार-२८ का होता है । [१२०] एक-एक चंद्र का तारारुप परिवार ६६९०५ है ।। [१२१] मेरु पर्वत की चारो तरफ ११२१ योजन को छोड़ कर ज्योतिष्क देव भ्रमण करते है, लोकान्त से ज्योतिष्क देव का परिभ्रमण ११११ योजन है । [१२२] जंबूद्वीप के मंडल में नक्षत्र के सम्बन्ध में प्रश्न-अभिजीत नक्षत्र जंबूद्वीप के सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है, मूल नक्षत्र सर्वबाह्य मंडल में, स्वाति नक्षत्र सर्वोपरी मंडल में और भरणी नक्षत्र सर्वाधस्तन मंडल में गमन करते है । [१२३] चंद्रविमान किस प्रकार के संस्थानवाला है ? अर्धकपिठ्ठ संस्थानवाला है, वातोध्धूत धजावाला, विविध मणिरत्नो से आश्चर्यकारी, यावत् प्रतिरूप है, इसी प्रकार सूर्य यावत् ताराविमान का वर्णन समझना । __ वह चंद्र विमान आयामविष्कम्भ से छप्पन योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण है, व्यास को तीनगुना करने से इसकी परिधि होती है और बाहल्य अठ्ठाइस योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण है, सूर्य विमान का आयामविष्कम्भ अडतालीश योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण, परिधि आयामविष्कम्भ से तीन गुनी, बाहल्य से चौबीस योजन एवं एक योजन के एकसठांश भाग प्रमाण है । नक्षत्र विमान का आयाम विष्कम्भ एक कोस, परिधि उससे तीनगुनी और बाहल्य देढ कोस प्रमाण है । तारा विमान का आयामविष्कम्भ अर्धकोस, परिधि उनसे तीनगुनी और बाहल्य ५०० धनुष प्रमाण है । चंद्र विमान को १६००० देव वहन करते है, यथा-पूर्व दिशा में सिंह रुपधारी ४००० देव, दक्षिण में गजरूपधारी ४००० देव, पश्चिम में वृषभरूपधारी ४००० देव और उत्तर में अश्वरूपधारी ४००० देव वहन करते है । सूर्य विमान के विषय में भी यहीं समझना,
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy