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________________ १५६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मध्यम तापक्षेत्र को प्राप्त हो जाता है तब वह मंदगतिवाला होकर एकमुहूर्त में चार-चार हजार योजन गति करता है । ऐसा कहने का हेतु यह है कि यह जंबूद्वीप चारो ओर से सभी द्वीपसमुद्रो से घीरा हुआ है, जब सर्वाभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके सूर्य गमन करता है, उन दिनों में तापक्षेत्र ९१००० योजन का होता है और सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है तब तापक्षेत्र ६१००० योजन का होता है, रात्रि दिन का प्रमाण पूर्ववत् ही होता है । भगवंत फरमाते है कि सूर्य एक मुहूर्त में सातिरेक पांच-पांच हजार योजन की गति करता है । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से संक्रमण करके गति करता है तब पांच-पांच हजार योजन एवं २५१ योजन तथा एक योजन का उनतीस षष्ठ्यंश भाग प्रमाण से एकएक मुहूर्त में गति करते है । उस समय में यहां रहे हुए मनुष्यो को ४७२६३ एवं एक योजन के एकवीश एकसठ्ठांश भाग प्रमाण से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । रात्रिदिन पूर्ववत् जानना । निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नए संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में अभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके अनन्तर दुसरे मंडल में गति करता है, तब ५२५१ योजन एवं एक योजन के सत्तचत्तालीश षष्ठ्यंश भाग एकएक मुहूर्त में गमन करता है, उस समय यहां रहे हुए मनुष्यों को ४७१७९ योजन एवं एक योजन के सत्तावनषष्ठयंश भाग तथा साठ भाग को एकसठ से छेदकर उन्नीस चूर्णिका भाग से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । रात्रिदिन का प्रमाण पूर्ववत् जानना । निष्क्रमण करता हुआ वही सूर्य दुसरे अहोरात्र में तीसरे मंडल में उपसंक्रमण करके भ्रमण करता है तब ५२५२ योजन एवं एक योजन के पांच षष्ठ्यंश भाग एक एक मुहूर्त में जाता है, उस समय यहां रहे हुए मनुष्यो को ४७०९६ योजन एवं एक योजन के तेईस षष्ठ्यंश भाग तथा साठ के एक भाग को एकसठ से छेदकर दो चूर्णिका भाग से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । इसी प्रकार से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य तद्अनन्तर-अनन्तर मंडलो में गति करता है, तब एक योजन के अट्ठारह-अठ्ठारह साठ भाग से एकएक मंडल में मुहूर्त गति को बढाते बढाते ८४ योजनो में किंचित् न्यून पुरुषछाया की हानि करते-करते सर्वबाह्य मंडल में गति करता है । जब वह सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है, तब ५३०५ योजन एवं एक योजन के पन्द्रह षष्ठ्यंश भाग एक एक मुहूर्त में गमन करता है, उस समय यहां रहे हुए मनुष्यो को ३१८३१ योजन एवं एक योजन के तीस षष्ठ्यंश भाग प्रमाण से सूर्य दृष्टिगोचर होता है उस समय उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । इस प्रकार पहले छ मास होते है, छ मास का पर्यवसान होता है । दुसरे छ मास में सूर्य सर्वबाह्य मंडल से सर्व अभ्यन्तर मंडल की तरफ प्रवेश करने का आरंभ करता है । प्रथम अहोरात्र में जब अनन्तर मंडल में प्रवेश करता है, तब ५३०४ योजन एवं एक योजन के सत्तावन पष्ठ्यंश भाग से एकएक मुहर्त में गमन करता है । उस समय यहां रहे हुए मनुष्य को ३१९१६ योजन तथा एक योजन के उनचालीश षष्ठ्यंश भाग को तथा साठ को एकसठ भाग से छेदकर साठ चूर्णिका भागोसे सूर्य दृष्टिगोचर होता है । रात्रिदिन पूर्ववत् जानना । इसी क्रमसे प्रवेश करता हुआ सूर्य अनन्तर-अनन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके प्रवेश करता है, तब एक योजन के अठ्ठारह-अठ्ठारह षष्ठ्यंश भाग एक मंडल में मुहूर्त गति से न्यून करते हुए और किंचित् विशेष ८५-८५ योजन की पुरुषछाया को बढ़ाते हुए सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करते है । तब ५२५१ योजन एवं एक योजन के उनतीसषष्ठ्यंश
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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