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सूर्यप्रज्ञप्ति - २/१/३१
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पश्चिम दोनो भागो को प्रकाशित करता है, जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण में १२४ विभाग करके दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम के चतुर्थ भाग मंडल में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भू भाग से ८०० योजन उपर जाकर प्रभातकाल में दो सूर्य उदित होते है । प्राभृत- २ - प्राभृतप्राभृत- २
[३२] हे भगवन् ! एक मंडल से दुसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कैसे गति करता है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है - ( 9 ) वह सूर्य भेदघात से संक्रमण करता है । (२) वह कर्णकला से गमन करता है । भगवंत कहते है कि जो भेदघात से संक्रमण बताते है उसमें यह दोष है कि भेदघात से संक्रमण करता सूर्य जिस अन्तर से एक मंडल से दुसरे मंडल में गमन करता है वह मार्ग में आगे नहीं जा शकता, दुसरे मंडल में पहुंचने से पहले ही उनका भोगकाल न्यून हो जाता है । जो यह कहते है कि सूर्य कर्णकला से संक्रमण करता है वह जिस अन्तर से एक मंडल से दुसरे मंडल में गति करता है तब जितनी कर्णकाल को छोडता है उतना मार्ग में आगे जाता है, इस मतमें यह विशेषता है कि आगे जाता हुआ सूर्य मंडलका को न्यून नहीं करता । एक मंडल से दुसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कर्णकला से गति करता है यह बात नय गति से जानना ।
प्राभृत- २ - प्राभृतप्राभृत- ३
[३३] हे भगवन् ! कितने क्षेत्र में सूर्य एकएक मुहूर्त में गमन करता है ? इस विषय में चार प्रतिपत्तियां है । (१) सूर्य एक-एक मुहूर्त में छ-छ हजार योजन गमन करता है । (२) पांच-पांच हजार योजन बताता है । (३) चार-चार हजार योजन कहता है । (४) सूर्य एक-एक मुहूर्त में छह या पांच या चार हजार योजन गमन करता है ।
जो यह कहते है कि एक-एक मुहूर्त में सूर्य छ छ हजार योजन गति करते है उनके मतानुसार जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से गमन करता है तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारहमुहूर्त की रात्रि होती है, उन दिनो में १०८००० योजन प्रमाण तापक्षेत्र होता है, जब वह सूर्य सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है और ७२००० योजन का तापक्षेत्र होता है ।
जो सूर्य का गमन पांच-पांच हजार योजन का एकमुहूर्त में बतलाते है वह यह कहते है कि सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करता है तब रात्रिदिन का प्रमाण पूर्ववत् है, लेकिन तापक्षेत्र ९०००० योजन होता है । जब सर्वबाह्य मंडल में गति करता है तब तापक्षेत्र ६०,००० योजन हो जाता है । जो मतवादी चार-चार हजार योजन का गमनक्षेत्र कहते है, वह सर्वाभ्यन्तर मंडल में सूर्य का तापक्षेत्र ७२,००० योजन का कहते है और सर्वबाह्य मंडल में ४८,००० योजन का तापक्षेत्र बताते है, लेकिन रात्रिदिन का प्रमाण पूर्ववत् ही है
जो एक मुहूर्त में सूर्य का गमन छह-पांच या चार हजार योजन बताते है, वह यह कहते है कि सूर्य उदय और अस्त काल में शीघ्रगतिवाला होता है, तब वह छह-छह हजार योजन एकमुहूर्त में गति करता है; फिर वह मध्यम तापक्षेत्र को प्राप्त करते करते मध्यमगतिवाला होता जाता है, तब वह पांच-पांच हजार योजन एक मुहूर्त में गति करता है, जब पूर्णतया