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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जघन्यतः पुरुषवेदकर्म का पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का एक सप्तमांश भाग बांधते हैं और उत्कृष्टतः वही एक सप्तमांश भाग पूरा बांधते हैं । एकेन्द्रिय जीव नपुंसकवेदकर्म का जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कर्म सागरोपम का दो सप्तमांश भाग बांधते हैं और उत्कृष्ट वही दो सप्तमांश भाग परिपूर्ण बाँधते हैं । हास्य और रति का बन्धकाल पुरुषवेद के समान जानना । अरति, भय, शोक और जुगुप्सा का बन्धकाल नपुंसकवेद के समान जानना । नरकायु, देवायु, नरकगतिनाम, देवगतिनाम, वैक्रियशरीरनाम, आहाकशरीरनाम, नरकानुपूर्वीनाम, देवानुपूर्वीनाम, तीर्थंकरनाम, इन नौ पदों को एकेन्द्रिय जीव नहीं बांधते । एकेन्द्रिय जीव तिर्यञ्चायु का जघन्य अन्तर्मुहूर्त का, उत्कृष्ट सात हजार तथा एक हजार वर्ष का तृतीय भाग अधिक करोड पूर्व का बन्ध करते हैं । मनुष्यायु का बन्ध भी इसी प्रकार समझना । तिर्यञ्चगतिनाम का बन्धकाल नपुंसकवेद के समान है तथा मनुष्यगतिनाम का बन्धकाल सातावेदनीय के समान है ।
एकेन्द्रियजाति-नाम और पंचेन्द्रियजाति-नाम का बन्धकाल नपुंसकवेद के समान जानना तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जाति-नाम का बंध जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का नव पैतीशांश और उत्कृष्ट वही नव पैतीशांश भाग पूरे बांधते हैं । जहाँ जघन्यतः दो सप्तमांश भाग, तीन सप्तमांश भाग या चार सप्तमांश भाग अथवा पांच-छ
और सात अट्ठावीशांश भाग कहे हैं, वहाँ वे ही भाग जघन्य रूप से पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम कहना और उत्कृष्ट रूप में परिपूर्ण भाग समझना । इसी प्रकार जहाँ जघन्य रूप से एक सप्तमांश या देढ सप्तमांश भाग है, वहाँ जघन्य रूप से वही भाग कहना और उत्कृष्ट रूप से वही भाग परिपूर्ण कहना । यशःकीर्तिनाम और उच्चगोत्र का एकेन्द्रिय जीव जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के एक सप्तमांश भाग का एवं उत्कृष्टतः सागरोपम के पूर्ण एक सप्तमांश भाग का बन्ध करते हैं । एकेन्द्रिय जीव का अन्तरायकर्म का जघन्य और उत्कृष्ट बन्धकाल ज्ञानावरणीय कर्म के समान जानना ।
[५४३] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बांधते हैं । इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति जानना । इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति के समान द्वीन्द्रिय जीवों की बंधस्थिति का कथन करना। जहाँ एकेन्द्रिय नहीं बांधते, वहाँ ये भी नहीं बांधते हैं । द्वीन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीयकर्म का बन्ध जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः वही परिपूर्ण बांधते हैं । द्वीन्द्रिय जीव तिर्यञ्चायु को जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्टतः चार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष की बांधते हैं । इसी प्रकार मनुष्यायु का कथन भी करना । शेष यावत् अन्तरायकर्म तक एकेन्द्रियों के समान जानना ।
भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बंध करते हैं ? गौतम! जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का बंध करते हैं और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बांधते हैं । इस प्रकार जिसके जितने भाग हैं, वे उनके पचाससागरोपम के साथ कहने चाहिए । त्रीन्द्रिय जीव मिथ्यात्व-वेदनीय कर्म का बन्ध जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम का और उत्कृष्ट पूरे पचास सागरोपम का