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________________ प्रज्ञापना- २३/२/५४१ । सूक्ष्म - नामकर्म की स्थिति । जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीशांश भाग की और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल अट्ठारह सौ वर्ष का है । बादर - नामकर्म की स्थिति अप्रशस्तविहायोगति के समान जानना । इसी प्रकार पर्याप्त - नामकर्म जानना । अपर्याप्त नामकर्म की स्थिति सूक्ष्म-नामक के समान है । प्रत्येक शरीर - नामकर्म की स्थिति भी दो सप्तमांश भाग की है । साधारणशरीरनामकर्म की स्थिति सूक्ष्मशरीर नामकर्म के समान है स्थिर - नामकर्म की स्थिति एक सप्तमांश भाग तथा अस्थिर नामकर्म की दो सप्तमांश भाग की है । शुभ - नामकर्म की स्थिति एक सप्तमांश भाग की और अशुभ नामकर्म की दो सप्तमांश भाग की है । सुभगनामकर्म की स्थिति एक सप्तमांश भाग की और दुर्भग-नामकर्म की दो सप्तमांश भाग है । सुस्वर और आदेय नामकर्मकी स्थिति सुभग नामकर्मानुसार और दुस्वर तथा अनादेय की दु के समान जानना । यशः कीर्ति - नामकर्म की स्थिति जघन्य आठ मुहूर्त की और उत्कृष्ट द कोडाकोडी सागरोपम की है । अबाधाकाल एक हजार वर्ष का होता है । अयशः कीर्तिनामकर्म की स्थिति अप्रशस्तविहायोगति - नामकर्म के समान जानना । इसी प्रकार निर्माणनामकर्म की स्थिति भी जानना । तीर्थंकर नामकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तः कोडाकोडी सागरोपम । जहाँ स्थिति एक सप्तमांश भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल एक हजार वर्ष का समझना एवं जहाँ दो सप्तमांश भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल दो हजार वर्ष का समझना । उच्चगोत्र-कर्म की स्थिति ? जघन्य आठ मुहूर्त, उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम है तथा अबाधाकाल एक हजार वर्ष है । नीचगोत्रकर्म की स्थिति ? अप्रशस्तविहायोगति के समान है । अन्तरायकर्म की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा अबाधाकाल तीन हजार वर्ष है एवं अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेककाल है । १११ [५४२ ] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म कितने काल का बांधते हैं ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के तीन सप्तमांश और उत्कृष्ट पूरे सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का । इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क का बन्ध भी जानना । एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीयकर्म का जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के देढ सप्तमांश और उत्कृष्ट पूरे सागरोपमं के देढ सप्तमांश भाग का बन्ध करते हैं। असातावेदनीय का बन्ध ज्ञानावरणीय के समान जानना । एकेन्द्रिय जीव सम्यक्त्ववेदनीय कर्म नहीं बांधते । मिथ्यात्ववेदनीय कर्म ? जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम काल का और उत्कृष्ट एक परिपूर्ण सागरोपम का बांधते हैं । एकेन्द्रिय जीव सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय नहीं बांधते । I भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कषायद्वादशक का कितने काल का बन्ध करते हैं । गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के चार सप्तमांश भाग और उत्कृष्ट वही चार सप्तमांश परिपूर्ण बांधते हैं । इसी प्रकार यावत् संज्वलन क्रोध से लेकर यावत् संज्वलन लोभ तक बांधते हैं । स्त्रीवेद का बन्धकाल सातावेदनीय के समान जानना । एकेन्द्रिय जीव
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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