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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[१६९] उस विजयद्वार के दोनों ओर दोनों नैषधिकाओं में दो दो तोरण कहे गये हैं। यावत् उन पर आठ-आठ मंगलद्रव्य और छत्रातिछत्र हैं । उन तोरणों के आगे दो दो शालभंजिकाएँ हैं । उन तोरणों के आगे दो दो नागदंतक हैं । उन नागदंतकों में बहुत सी काले सूत में गूंथी हुई विस्तृत पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् वे अतीव शोभा से युक्त हैं। उन तोरणों के आगे दो दो घोड़ों के जोड़े हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। इसी प्रकार हयों की पंक्तियाँ, हयों की वीथियाँ और हयों के मिथुनक हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पद्मलताएँ चित्रित हैं यावत् वे प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे अक्षत के स्वस्तिक चित्रित हैं जो सर्व रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो चन्दनकलश हैं । वे श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं यावत् वे सर्वरत्नमय हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो भुंगारक हैं । वे श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं यावत् वे भंगारक बड़ेबड़े और मत्त हाथी के मुख की आकृति वाले हैं।
उन तोरणों के आगे दो-दो आदर्शक हैं । इन दर्पणों के प्रकण्ठक तपनीय स्वर्ण के बने हुए हैं, इनके स्तम्भ वैडूर्यरत्न के हैं, इनके वरांग वज्ररत्नमय हैं, इनके वलक्ष नाना मणियों के हैं, इनके मण्डल अंकरत्न के हैं । ये दर्पण अनवघर्षित और निर्मल छाया से युक्त हैं, चन्द्रमण्डल की तरह गोलाकार हैं । ये दर्पण बड़े-बड़े और दर्शक की आधी काया के प्रमाण वाले हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो वज्रनाभ स्थाल हैं । वे स्वच्छ, तीन बार सूप आदि से साफ किये हुए और मूसलादि द्वारा खंडे हुए शुद्ध स्फटिक जैसे चावलों से भरे हुए हैं । वे सर्व स्वर्णमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् वे स्थाल बड़े-बड़े स्थ के चक्र के समान हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियां हैं । ये स्वच्छ जल से परिपूर्ण हैं । नानाविध पांच रंग के हरे फलों से भरी हुई हैं । वे पृथ्वीपरिणामरूप और शाश्वत हैं । वे स्थाल सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं और बड़े-बड़े गोकलिंजर चक्र के समान हैं ।
उन तोरणों के आगे दो-दो सुप्रतिष्ठक हैं । वे नाना प्रकार के पांच वर्षों की प्रसाधनसामग्री और सर्व औषधियों से परिपूर्ण लगते हैं, वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिका हैं | उन में बहुत-से सोने-चांदी के फलक हैं । उन सोने-चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक हैं । ये मुक्ताजाल के अन्दर लटकती हुई मालाओं से युक्त हैं यावत् हाथी के दांत के समान हैं । उन में बहुत से चांदी के सीके हैं। उन चांदी के सींकों में बहुत से वातकरक हैं । ये घड़े काले से यावत् सफेद सूत्र के बने हुए ढक्कन से आच्छादित हैं । ये सब वैडूर्यमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं ।
उन तोरणों के आगे दो-दो चित्रवर्ण के रत्नकरण्डक हैं । किसी चातुरन्त चक्रवर्ती का नाना मणिमय होने से नानावर्ण का रत्नकरण्डक जिस पर वैडूर्यमणि और स्फटिक मणियों का ढक्कन लगा हुआ है, अपनी प्रभा से उस प्रदेश को सब ओर से अवभासित करता है, उद्योतित करता है, प्रदीप्त करता है, प्रकाशित करता है, इसी तरह वे विचित्र रत्नकरंडक वैडूर्यरत्न के ढक्कन से युक्त होकर अपनी प्रभा से उस प्रदेश को सब ओर से अवभासित करते हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो हयकंठक यावत् दो-दो वृषभकंठक कहे गये हैं । वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । उन हयकंठकों में यावत् वृषभकंठकों मे दो-दो फूलों की चंगेरियाँ हैं । इसी तरह माल्यों, गंध, चूर्ण, वस्त्र एवं आभरणों की दो-दो चंगेरियाँ हैं । इसी तरह सिद्धार्थ