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जीवाजीवाभिगम-३ / द्वीप./१६७
है । यह द्वार प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर है और बहुत ही मनोहर है ।
इसकी नींव वज्रमय है । पाये रिष्टरत्न के बने हैं । स्तंभ वैडूर्यरत्न के हैं । बद्धभूमितल स्वर्ण से उपचित और प्रधान पाँच वर्णों की मणियों और रत्नों से जटित है । देहली हंसगर्भ रत्न की है । गोमेयक रत्न का इन्द्रकील है और लोहिताक्ष रत्नों की द्वारशाखाएँ हैं । इसका उत्तरंग ज्योतिर रत्न का है । किवाड वैडूर्यमणि के हैं, कीलें लोहिताक्षरत्न की हैं, वज्रमय संधियां हैं, इनके समुद्गक नाना मणियों के हैं, अर्गला वज्ररत्नों की है । आवर्तनपीठिका वज्ररत्न की है । किवाड़ों का भीतरी भाग अंकरत्न का है । दोनों किवाड़ अन्तररहित और सघन हैं । उस द्वार के दोनों तरफ की भित्तियों में १६८ भित्तिगुलिका हैं और उतनी ही गोमानसी हैं । इस द्वार पर नाना मणिरत्नों के व्याल - सर्पों के चित्र बने हैं तथा लीला करती हुई पुत्तलियाँ भी नाना मणिरत्नों की बनी हुई हैं । इस द्वार का माडभाग वज्ररत्नमय है और उस माडभाग का शिखर चांदी का है । द्वार की छत के नीचे का भाग तपनीय स्वर्ण का है। झरोखे मणिमय बांसवाले और लोहिताक्षमय प्रतिबांस वाले तथा रजतमय भूमिवाले हैं । पक्ष और पक्षबाह अंकरत्न के हैं । ज्योतिरसरत्न के बांस और बांसकवेलु हैं, रजतमयी पट्टिकाएँ हैं, जातरूप स्वर्ण की ओहाडणी हैं, वज्ररत्नमय ऊपर की पुंछणी हैं और सर्वश्वेत रजतमय आच्छादन हैं । बाहुल्य से अंकरत्नमय, कनकमय कूट तथा स्वर्णमय स्तूपिकावाला वह विजयद्वार है । उस द्वार की सफेदी शंखतल, विमल जमे हुए दही, गाय के दूध, फेन और चांदी के समुदाय के समान है, तिलकरत्नों और अर्धचन्द्रों से वह नानारूप वाला है, नाना प्रकार की मणियों की माला से वह अलंकृत है, अन्दर और बाहर से कोमल-मृदु पुद्गलस्कंधों से बना हुआ है, तपनीय (स्वर्ण) की रेत का जिसमें प्रस्तर - प्रस्तार है । ऐसा वह विजयद्वार सुखद और शुभस्पर्श वाला, सश्रीक रूप वाला, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाएं हैं, उन दो नैषेधिकाओं में दो-दो चन्दन के कलशों की पंक्तियां हैं । वे कलश श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं, सुगन्धित और श्रेष्ठ जल से भरे हुए हैं, उन पर चन्दन का लेप किया हुआ है, उनके कंठों में मौली बंधी हुई है, पद्मकमलों का ढक्कन है, वे सर्वरत्नों के बने हुए हैं, स्वच्छ हैं, श्लक्ष्ण हैं यावत् बहुत सुन्दर हैं । वे कलश बड़े-बड़े महेन्द्रकुम्भ समान हैं । उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो-दो नागदन्तों की पंक्तियाँ हैं । वे मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी-छोटी घण्टिकाओं से युक्त हैं, आगे के भाग में ये कुछ ऊंची, ऊपर के भाग में आगे निकली हुई और अच्छी तरह ठुकी हुई हैं, सर्प के निचले आधे भाग की तरह उनका रूप है सर्वथा वज्ररत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, यावत् प्रतिरूप हैं । वे नागदन्तक बड़े बड़े गजदन्त के समान हैं ।
उन नागदन्तकों में बहुत सी काले डोरे में, बहुत सी नीले डोरे में, यावत् शुक्ल वर्ण के डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रही हैं । उन मालाओं में सुवर्ण का लंबूसक है, आजूबाजू वे स्वर्ण के प्रतरक से मण्डित हैं, नाना प्रकार के मणि रत्नों के विविध हार और अर्धहारों से वे मालाओं के समुदाय सुशोभित हैं यावत् वे श्री से अतीव अतीव सुशोभित हो रही हैं । उन नागदंतकों के ऊपर अन्य दो और नागदंतकों की पंक्तियां हैं । वे मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी
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