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जीवाजीवाभिगम-३/तिर्यंच-१/१३०
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के चार भेद समान यहाँ भी कहना । इसी तरह भुजगपरिसों के भी चार भेद कहना ।
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यकयोनिक क्या हैं? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मर्छिम० और गर्भव्युत्क्रांतिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । सम्मूर्छिम खेचर पं० ति० दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त० और अपर्याप्तसम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिकों के सम्बन्ध में भी कहना । हे भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । अण्डज तीन प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । पोतज तीन प्रकार के हैं स्त्री, पुरुष और नपुंसक। सम्मूर्छिम सब नपुंसक होते हैं ।
[१३१] हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! छह-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं । गौतम ! तीनो । भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं । भगवन् ! वे जीव क्या मनयोगी हैं, वचनयोगी हैं, काययोगी हैं ? गौतम ! तीनों हैं । भगवन् ! वे जीव साकार-उपयोग वाले हैं या अनाकार-उपयोग वाले हैं ? गौतम ! दोनो है।
__ भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंख्यात वर्ष की आयु वालों, अकर्मभूमिकों और अन्तर्वीपकों को छोड़कर सब जगह से उत्पन्न होते हैं । हे भगवन् ! उन जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग-प्रमाण । उन जीवों के पांच समुद्घात हैं, यथा-वेदनासमुद्घात यावत् तैजससमुद्घात । वे जीव मारणांतिकसमुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं । भगवन् ! वे जीव मरकर अनन्तर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? कहाँ जाते हैं ? गौतम ! जैसे प्रज्ञापना के व्युत्क्रांतिपद में कहा गया है, वैसा यहाँ कहना । हे भगवन् ! उन जीवों की कितने लाख योनिप्रमुख जातिकुलकोटि हैं ? गौतम ! बारह लाख।
हे भगवन् ! भुजपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कितने प्रकार का योनिसंग्रह है ? गौतम ! तीन प्रकार का, अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । इस तरह जैसा खेचरों में कहा वैसा, यहाँ भी कहना । विशेषता यह है-इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । ये मरकर चारों गति में जाते हैं । नरक में जाते हैं तो दूसरी पृथ्वी तक जाते हैं । इनकी नौ लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! उरपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! जैसे भुजपरिसर्प का कथन किया, वैसा यहाँ भी कहना । विशेषता यह है कि इनकी स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहर्त
और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । ये मरकर यदि नरक में जावें तो पांचवीं पृथ्वी तक जाते हैं । इनकी दस लाख जातिकुलकोडी हैं ।
___चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों की पृच्छा ? गौतम ! इनका योनिसंग्रह दो प्रकार का है, यथा जरायुज और सम्मूर्छिम | जरायुज तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । जो सम्मूर्छिम हैं वे सब नपुंसक हैं । उन जीवों की लेश्याएँ, इत्यादि सब खेचरों की तरह कहना । विशेषता इस प्रकार है-इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन