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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उत्कृष्ट पांच सौ योजन तक ऊपर उछलते हैं ।
[१२५] रात-दिन दुःखों से पचते हुए नैरयिकों को नरक में पलक मूंदने मात्र काल के लिए भी सुख नहीं है किन्तु दुःख ही दुःख सदा उनके साथ लगा हुआ है ।
[१२६] तैजस-कार्मण शरीर, सूक्ष्मशरीर और अपर्याप्त जीवों के शरीर जीव के द्वारा छोड़े जाते ही तत्काल हजारों खण्डों में खण्डित होकर बिखर जाते हैं ।
[१२७] नरक में नैरयिकों को अत्यन्त शीत, अत्यन्त उष्णता, अत्यन्त भूख, अत्यन्त प्यास और अत्यन्त भय और सैंकड़ों दुःख निरन्तर बने रहते हैं ।
[१२८] इन गाथाओं में विकुर्वणा का अवस्थानकाल, अनिष्ट पुद्गलों का परिणमन, अशुभ विकुर्वणा, नित्य असाता, उपपात काल में क्षणिक साता, ऊपर छटपटाते हुए उछलना, अक्षिनिमेष के लिए भी साता न होना, वैक्रियशरीर का बिखरना तथा नारकों को होने वाली सैकड़ों प्रकार की वेदनाओं का उल्लेख किया गया है । [१२९] नैरयिकों का वर्णन समाप्त हुआ ।
| प्रतिपत्ति-३ - तिर्यंचउद्देशक-१ | [१३०] तिर्यक्योनिक जीवों का क्या स्वरूप है ? तिर्यक्योनिक जीव पांच प्रकार के हैं, यथा-एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक का क्या स्वरूप है ? एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक पांच प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक्योनिक | पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच का क्या स्वरूप है ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक । सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यकयोनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक तिर्यंचयोनिक । बादर पृथ्वीकायिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक । अप्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, इस प्रकार पृथ्वीकायिक की तरह चार भेद कहना । वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक पर्यन्त ऐसे ही भेद कहना ।
द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक जीवों का स्वरूप क्या है ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त द्वीन्द्रिय और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक कहना । पंचेन्द्रिय तिर्थक्योनिक क्या हैं ? वे तीन प्रकार के हैं, यथा-जलचर, स्थलचर और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक ।
जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यकयोनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च । सम्मूर्छिम जलचर पंचे० क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त० और अपर्याप्त सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । गर्भव्युत्क्रांतिक जलचर पंचेन्द्रिय० क्या हैं ? वे दो प्रकार के है, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च । स्थलचरपंचेन्द्रिय दो प्रकार के हैं, यथा-चतुष्पद० और परिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रांतिक चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यश्च । जलचरों के समान चार भेद इनके भी जानना । परिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो प्रकार के हैं, यथा-उरगपरिसर्प० और भुजगपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच । उरगपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक दो प्रकार के हैं, जलचरों