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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जीव अनुभव करते हैं ।
हे भगवन् ! शीतवेदनीय नरकों में नैरयिक जीव कैसी शीतवेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम ! जैसे कोई लुहार का लड़का जो तरुण, युगवान् यावत् शिल्पयुक्त हो, एक बड़े लोहे के पिण्ड को जो पानी के छोटे घड़े के बराबर हो, लेकर उसे तपा-तपाकर, कूट-कूटकर जघन्य एक, दो, तीन दिन उत्कृष्ट से एक मास तक पूर्ववत् सब क्रियाएँ करता रहे तथा पूरी तरह उष्ण गोले को लोहे की संडासी से पकड़ कर असत् कल्पना द्वारा उसे शीतवेदनीय नरकों में डाले इत्यादि । इसी प्रकार हे गौतम ! असत् कल्पना से शीतवेदना वाले नरकों से निकला हुआ नैरयिक इस मनुष्यलोक में शीतप्रधान जो स्थान हैं जैसे कि हिम, हिमपुंज, हिमपटल, हिमपटल के पुंज, तुषार, तुषार के पुंज, हिमकुण्ड, हिमकुण्ड के पुंज, शीत और शीतपुंज
आदि को देखता है, देखकर उनमें प्रवेश करता है; वह वहाँ अपने नारकीय शीत को, तृषा को, भूख को, ज्वर को, दाह को मिटा लेता है और शान्ति के अनुभव से नींद भी लेता है, नींद से आंखें बेद कर लेता है यावत् गरम होकर अति गरम होकर वहाँ से धीरे धीरे निकल कर साता-सुख का अनुभव करता है । हे गौतम ! शीतवेदनीय नरकों में नैरयिक इससे भी अनिष्टतर शीतवेदना का अनुभव करते हैं ।
[१०६] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य से और उत्कर्ष से पनवणा के स्थितिपद अनुसार अधःसप्तमीपृथ्वी तक कहना ।
[१०७] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक वहाँ से निकलकर सीधे कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? प्रज्ञापना के व्युत्क्रान्तिपद अनुसार यहाँ भी अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना।
[१०८] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमणाम भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के जलस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम जलस्पर्श का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए । इसी प्रकार तेजस्, वायु और वनस्पति के स्पर्श के विषय में जानना । .
हे भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी है और सर्वान्तों में लम्बाई-चौड़ाई में सबसे छोटी है ? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! क्या दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्य में बड़ी और सर्वान्तों में छोटी है ? हाँ, गौतम ! है । इसी प्रकार यावत् छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी है और सर्वान्तों में लम्बाई-चौड़ाई में सबसे छोटी है ? हाँ, गौतम ! है, भगवन् ! क्या दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्य में बड़ी और सर्वान्तों में छोटी है ? हाँ, गौतम ! है । इसी प्रकार यावत् छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी और लम्बाई-चौड़ाई में छोटी है ।
[१०९] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों के पर्यन्तवर्ती प्रदेशों में जो पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं, वे जीव महाकर्मवाले, महाक्रियावाले और महाआस्रववाले और महावेदनावाले हैं क्या ? हाँ, गौतम ! इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना।