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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करके वेदना उत्पन्न करते हैं । वह वेदना उज्ज्व ल, विपुल, प्रगाढ, कर्कश, कटुक, कठोर, निष्ठुर, चण्ड, तीव्र, दुःखरूप, दुर्लध्य और दुःसह्य होती है । इसी प्रकार धूमप्रभापृथ्वी तक कहना । छठी और सातवीं पृथ्वी के नैरयिक बहत और बड़े लाल कुन्थुओं की रचना करते हैं, जिनका मुख मानो वज्र जैसा होता है और जो गोबर के कीड़े जैसे होते हैं । ऐसे कुन्थुरूप की विकुर्वणा करके वे एक दूसरे के शरीर पर चढ़ते हैं, उनके शरीर को बार बार काटते हैं और सौ पर्व वाले इक्षु के कीड़ों की तरह भीतर ही भीतर सनसनाहट करते हुए घुस जाते हैं और उनको उज्ज्वल यावत् असह्य वेदना उत्पन्न करते हैं ।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या शीत वेदना वेदते हैं, उष्ण वेदना वेदते हैं, या शीतोष्ण वेदना वेदते हैं ? गौतम ! वे सीर्फ उष्ण वेदना वेदते हैं । इस प्रकार शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के नैरयिकों में भी जानना । पंकप्रभा में शीतवेदना भी वेदते हैं
और उष्णवेदना भी वेदते हैं । वे नैरयिक बहुत हैं जो उष्णवेदना वेदते हैं और वे कम हैं जो शीत वेदना वेदते हैं । धूमप्रभा में सीत वेदना भी वेदते हैं और उष्ण वेदना भी वेदते हैं । वे नारकजीव अधिक हैं जो शीत वेदना वेदते हैं और वे थोड़े हैं जो उष्ण वेदना वेदते हैं । तमः प्रभा में सीर्फ शीत वेदना वेदते हैं । तमस्तमा में परमशीत वेदना वेदते हैं।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के नरक भव का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! वे वहाँ नित्य डरे हुए, त्रसित, भूखे, उद्विग्न और उपद्रवग्रस्त रहते हैं, नित्य वधिक के समान क्रूर परिणाम वाले, नित्य परम अशुभ, अनन्य सदृश अशुभ और निरन्तर अशुभ रूप से उपचित नरकभव का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । सप्तम पृथ्वी में पांच अनुत्तर बड़े से बड़े महानरक कहे गये हैं, यथा-काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान । वहाँ ये पांच महापुरुष सर्वोत्कृष्ट हिंसादि पाप कर्मों को एकत्रित कर मृत्यु के समय मर कर अप्रतिष्ठान नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुए-जमदग्नि का पुत्र परशुराम, लच्छतिपुत्र दृढायु, उपरिचर वसुराज, कौरव्य सुभूम और चुलणिसुत ब्रह्मदत्त। वहां वर्ण से काले, काली छवि वाले यावत् अत्यन्त काले हैं, इत्यादि वर्णन करना यावत् वे अत्यन्त जाज्वल्यमान विपुल एवं यावत् असह्य वेदना को वेदते हैं ।
हे भगवन् ! उष्णवेदना वाले नरकों में नारक किस प्रकार की उष्णवेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम ! जैसे कोई लुहार का लड़का, जो तरुण हो, बलवान हो, युगवान् हो, रोग रहित हो, जिसके दोनों हाथों का अग्रभाग स्थिर हो, जिसके हाथ, पांव, पसलियां, पीठ और जंघाए सुदृढ और मजबूत हों, जो लांघने में, कूदने में, वेग के साथ चलने में, फांदने में समर्थ हो और जो कठिन वस्तु को भी चूर-चूर कर सकता हो, जो दो ताल वृक्ष जैसे सरल लंबे पुष्ट बाह वाला हो, जिसके कंधे घने पुष्ट और गोल हों, चमडे की बेंत, मुदगर तथा मुट्ठी के आघात से घने और पुष्ट बने हुए अवयवों वाला हो, जो आन्तरिक उत्साह से युक्त हो, जो छेक, दक्ष, प्रष्ठ, कुशल, निपुण, बुद्धिमान, निपुणशिल्पयुक्त हो, वह एक छोटे घड़े के समान बड़े लोहे के पिण्ड को लेकर उसे तपा-तपा कर कूट कूट कर काट-काट कर उसका चूर्ण बनावे, ऐसा एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् अधिक से अधिक पन्द्रह दिन तक ऐसा ही करता रहे ।